25.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२३ वां सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करने का प्रयास करते हैं हमें अध्यात्म को जीने की राह सुझाने वाले आचार्य जी नित्य प्रयत्न करते हैं कि इनके माध्यम से हमारा चैतन्य जाग्रत हो सके, कर्म -प्रमाद  दूर हो सके, हमें सांसारिक व्यवहार में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके,हम मन की दुर्बलता दूर कर सकें, उत्साही बन सकें,

पं दीनदयाल उपाध्याय के जीवन और कर्म -कौशल का चिन्तन करने के साथ उनकी प्राणाहुति पर ध्यान दे सकें , व्यामोह से ग्रसित होने से बच सकें , आत्मविश्वासी बन सकें , पौरुष को पहचान सकें, राक्षसों को भांपने की तमीज पा सकें 


 अत्यन्त अल्प समय में १७ जून २०१४ को आचार्य जी द्वारा रचित एक अवतरित कविता जिसमें संपूर्ण सदाचार ही समाहित है देखिए 



पौरुष को तकदीर बदलनी आती है, कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है 

उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं, असंतोष को भली बात भी खोटी है 

संशय से विश्वास हमेशा जीता है, भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है 

मन की कमजोरी जीवन में घातक है, विश्वासी से दगा घोरतम पातक है 

सत्य विश्व की सबसे बड़ी   साधना है, सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है

समझ -बूझ कर भी दुर्गुण का त्याग नहीं, आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं

उपदेशों से जीवन नहीं संवरता है, पाता वही यहां पर जो कुछ करता है 

जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है, कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है 

कर्म -प्रमाद निराशा की परछाई  है, पतन -मार्ग की सबसे गहरी खाई है 

कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर, मन में नव उल्लास रहेगा जीवन भर


गीता का तीसरा अध्याय कर्म -योग है इस अध्याय में ४३ छंद हैं इसके ४२ वें छंद  


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।३/४२

 के अनुसार आत्मा को बुद्धि से परे कहा गया है 


अर्थ इस प्रकार है 


शरीर से परे  इन्द्रियाँ कही जाती हैं  इन्द्रियों से भी परे मन है,मन से परे बुद्धि और जो बुद्धि से भी परे है वह आत्मा है


४३ वें छंद में कहा गया है कि अपनी दुर्जॆय शक्ति इच्छाओं को आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा हम पराजित करें



 इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कठोपनिषद् की चर्चा क्यों की, आगामी आधिवेशन से हम लाभ कैसे उठाएं,भैया प्रदीप त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया, किनके अनुभवों का हम लाभ प्राप्त करें जानने के लिए सुनें