26.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२४ वां सार -संक्षेप

 हम  वसुधा भर को अपना परिवार समझते 

पर व्यवहार तुम्हारा घर में भी बाजारू..



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२४ वां सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हैं इनमें जितनी बार  सांसारिक व्यस्तताओं में फंसे हम लोग अवगाहन करेंगे उतना ही ये हमें लाभ पहुंचाएंगे ये हमारे विचारों को परिमार्जित करते हैं उद्दीप्त करते हैं 

योगी भाव रखते हुए अपने राग द्वेष आदि के आवरण को हटाकर (क्योंकि भगवान् को भी वही प्रिय है जो भूतमात्र के प्रति  द्वेषरहित है  सबका मित्र और करुणावान् है,ममता  अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में समान भाव रखने वाला है और क्षमावान् भी है)

शुद्ध दृष्टि प्राप्त करने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


क्या स्वधर्म है और क्या परधर्म है इस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है यदि राष्ट्र -रक्षा की आवश्यकता आ गई है यदि इस संसार में दुष्टवृत्तियों के निरसन की जरूरत महसूस हो रही है और हम कहें हमारे लिए सब बराबर है तो यह भ्रम विभ्रम है

आचार्य जी ने शिक्षकत्व को परिभाषित किया  शिक्षक अध्ययन करता है स्वाध्याय करता है 

परिस्थितियों को भांपता है छात्रों की आयु व ज्ञान का भाव अपने अन्दर प्रवेश कराता है और फिर छात्रों को समझ में आ सकने वाली भाषा में उसे बताता है 

आचार्य जी ने ब्रह्मावर्त सनातन धर्म मण्डल से संबन्धित एक प्रसंग बताया जो यह था कि आचार्य जी ने पुस्तकों में मुद्रण -त्रुटियों का उल्लेख किया तो एक शिक्षक ने उसकी अनदेखी करने की बात कही 

ऐसे शिक्षक को शिक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है 

आध्यात्मिक समर्पण को व्यक्त करती कबीर की एक साखी है 

जिसमें एक त्रुटि है 



यहु तन जारौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउँ।

 लेखणि करूँ करंक की, लिखि-लिखि राम पठाऊँ ||

यहां करंक नहीं होना चाहिए क्यों कि करंक का अर्थ है हड्डी 

जब सांसारिक शरीर भस्म हो जाएगा तो हड्डी 

भी नहीं बचेगी 

 करंक के स्थान पर करम होना चाहिए 

इसकी पुष्टि भी हुई भैया अखिल सहाय और भैया सलिल सहाय के नाना जी ने Belvedere Press Prayagraj में छपी कबीर बानी दिखाई जिसमें लिखा था 


यहु तन जारौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउँ।

 लेखणि करूँ करम की, लिखि-लिखि राम पठाऊँ ||


शिक्षकत्व आसान नहीं होता यह मात्र नौकरी नहीं है शिक्षक वह जो  ऐसी शिक्षा दे जिससे व्यक्ति संस्कारित बने 

शिक्षा ज्ञान का आधार है 

शिक्षा एक ऐसा तात्विक वरदान है जिसे प्राप्त है वह अपने को धन्य समझे ऐसी शिक्षा से इतर विदेशी शिक्षा ने हमें नौकर बनाया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें