प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११२५ वां सार -संक्षेप
श्रीमद्भग्वद्गीता का दूसरा अध्याय इस ग्रंथ का तत्त्व है इसमें ७२ छंद हैं
इसी में एक अत्यन्त प्रसिद्ध छंद है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
हमारे देश का एक अद्भुत अध्यात्मवादी चिन्तन है कि हम सफलता असफलता का ध्यान न रखते हुए कर्तव्य कर्म में रत रहें
सर्वज्ञानी शिक्षक श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि फल की इच्छा न करते हुए हम कर्म करते रहें
कोई कहे कि वह कुछ नहीं करेगा तो यह संभव नहीं जीने के लिए सांस तो हमें लेनी ही होगी क्षुधा पूर्ति तो करनी ही होगी
आगे भगवान् कहते हैं
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।
हे अर्जुन आसक्ति त्याग कर तथा सिद्धि / असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित होकर तुम कर्म करने में ध्यान दो यह समभाव ही योग है।
कर्म तो करना ही है कर्म न करना अपराध है
युद्ध क्षेत्र में हैं तो युद्ध तो करना ही पड़ेगा
सैनिक हो शिक्षक हो अधिवक्ता हो उसके लिए जो निर्धारित कर्म है वह उसे करना ही है यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह उपेक्षा का शिकार हो जाएगा
क्षण क्षण में कण कण पर कर्म की योजना है
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।
ये सारे छंद विचारणीय हैं
कर्म करें कर्म में लिप्त न हों यह अध्यात्म है
लेकिन वास्तविक अध्यात्म को शौर्य से प्रमंडित होना ही चाहिए
माला जपना अध्यात्म नहीं है
शौर्यविहीन अध्यात्म के कारण ही हमारे ऊपर इतने संकट आए शौर्याग्नि अत्यन्त आवश्यक है हमारा द्रष्टा ऋषि अध्यात्म के इस प्रकार से परिचित रहा है
तभी रावण ऐसे शौर्य पराक्रम शक्ति से युक्त ऋषि से भयभीत रहता था वह साधकों से उलझता था शौर्य प्रमंडित अध्यात्म मानवता को जीवन जीने का ज्ञान देता है
संसार में हमें अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो संसार हमें समझना ही होगा
जग स्वप्न सत्य माया मिथ्या का आडंबर ढोते ढोते
सुख सपनों का संसार सजाते रहते जो रोते रोते
वे सचमुच में अध्यात्मशक्ति से वंचित हैं सब बेचारे
जीवन भर भटके भूले फिरते रहते हैं मारे मारे।
अध्यात्मवादियो ! एक बात समझो मेधा के तन्तु खोल
अध्यात्म नहीं माला जपना अथवा केवल जय जयति बोल
अध्यात्म शक्ति संयम विवेक पौरुष परार्थ का चिन्तन है।
वह ज्ञान भक्ति वैराग्य शक्ति कर्मानुराग का मन्थन है
इस मंथन से संभूत तत्व-नवनीत जिस किसी ने जाना
उसके विवेकमय संसारी उपयोग विधा को पहचाना
वह द्रष्टा ऋषि अध्यात्म शक्ति के तत्व सत्व का गायक है
वह ही संपूर्ण धरित्रि के जीवन का भाग्य विधायक है।
उसने ही इस मानवता को जीवन जीने का ज्ञान दिया
अणु से विभु तक की यात्रा का पूरा पूरा अनुमान दिया
हे, अधुनातन अध्यात्मवादियो ! सुनो ध्यान से बात एक
पूजन अर्चन धारणा ध्यान का संगम है विक्रम विवेक।
शौर्याग्नि शिखा की आभा में ही दर्शित होते ज्ञान ध्यान
पुरुषार्थ पराक्रम छाँव तले विकसित होते शाश्वत प्रमाण
हे एकांगी अध्यात्मवादियो ! सुन लो अपने कान खोल
अध्यात्म शौर्य के साथ विश्व में गूँजे अपने विजय बोल।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा ओम प्रकाश आनन्द जी कवि श्री सुरेश अवस्थी जी का नाम क्यों लिया भैया मधुकर वशिष्ठ जी भैया आशुतोष द्विवेदी जी भैया पवन मिश्र जी भैया पङ्कज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें