4.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०२ वां* सार -संक्षेप


हमारे यहां के जो अवतार हैं उन अवतारों के बारे में हमारी सहज श्रद्धा होनी चाहिए 

भगवान् राम हमारे वन्दनीय हैं सामान्य जनों के लिए अवधी भाषा में मानस को व्यक्त करने वाले अवतारी विद्वान् तुलसीदास ने मानस में हर सोपान के पहले अद्भुत वन्दना की है और जो संस्कृत में है लंका कांड का मंगलाचरण है 


रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 





मैं उन राम की वन्दना करता हूं जो कामदेव के अरि शिव जी के द्वारा सेवित हैं(जो शिव के उपासक हैं राम के निन्दक हैं और जो राम के उपासक हैं शिव के निन्दक हैं वे नारकीय लोग हैं किसी से लगाव तो किसी से दुराव क्यों  हमारा इष्ट कोई भी हो दूसरे के प्रति दुर्भावनापूर्ण  भाव नहीं होना चाहिए ),जन्म-मृत्यु के भय का हरण करने वाले, कालरूपी मतवाले गज के लिए सिंह के समान, योगियों के स्वामी , ज्ञान के द्वारा जानने योग्य, गुणों की खान , अजेय, निर्गुण, निर्विकार, माया से परे , देवों के स्वामी, दुष्टों के वध में लगे हुए , ब्राह्मण समूह के एक  रक्षक,बादल के समान सुंदर श्याम, कमल की तरह की आंखों वाले, राजा  के रूप में परमदेव  हैं


आचार्य जी नित्य हमें उत्साहित कर रहे हैं


मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान

मैं भाव प्रभाव सुनिष्ठा हूं

धरती की प्राणप्रतिष्ठा हूं

संकट कराल संघर्ष बीच   दृढ़ धैर्य शक्ति मंजिष्ठा हूँ  

मैं  संयम शुचिता  सात्विकता संतोष सरलता मुदिता हूं

मैं गहन निशा में  चन्द्रकिरण प्रमुदित प्रभात का सविता हूं

विभु की कल्पना और अणु की अनुभूति हमारे मन में है

संसार -धर्म का ज्ञान और परिपालन भी जीवन में है...


आचार्य जी ने लेखन -योग के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट किया ताकि हमें अपने भीतर की आत्मशक्ति की अभिव्यक्ति के दर्शन हो सकें और हमारी शक्ति व्यर्थ न जाए 


अपनी प्रकृति के लोगों के साथ मित्रता करें विचार विमर्श करें संगठित शक्ति महत्त्वपूर्ण है राष्ट्रीय अधिवेशन को सफल बनाएं और उसकी समीक्षा करें नए कार्यकर्ता खोजें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का नाम क्यों लिया नागपुर की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें