हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें...
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११०३ वां* सार -संक्षेप
स्थान :पुणे ( भैया विवेक भागवत जी का आवास
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ 18-48॥
हम संसार में रह रहे हैं तो सहज जीवन जीने का भी प्रयास होना चाहिए लेकिन उस सहजता के साथ अपना उद्देश्य विस्मृत न करें
हमारा उद्देश्य है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
हम जहां हैं जिस परिस्थिति में हैं यह खोजें कि हमारा व्यक्तित्व राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण है या नहीं
भारतवर्ष में धर्म का यज्ञ सतत चल रहा है
सिद्ध होकर किसी एक कार्यव्यवहार में लगना बहुत कठिन होता है क्योंकि जीवन एक बहुरंगी कैनवास है उस पर अनेक प्रकार के चित्र बनते रहते हैं और ये चित्र प्राकृतिक रूप से आते जाते रहते हैं
अद्भुत है अध्यात्म
अपने भीतर खोजने की चेष्टा की जाए तो हम स्वयं बहुत शक्तिसम्पन्न
तेजस्वी ओजस्वी होते हैं
ध्यान धारणा चिन्तन मनन उचित खानपान से यह खोजा जा सकता है
और इस प्रकार हम शक्ति शौर्य पराक्रम से अभिमन्त्रित होने का प्रयास करें यह अभिमन्त्रण अपने भीतर की शक्तियों को पराशक्ति से संयुत करने का एक भाव है यह जिनमें जितना समा जाता है उनकी शक्ति उनकी बुद्धि उनका विचार उनका प्रस्तुतिकरण दूसरे को प्रभावित करने लगता है
आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम युगभारती के सदस्य अपने अपने कार्यव्यवहार में व्यस्त रहते हुए अपने भीतर झांकने के लिए कुछ समय निकालें हम अपनी शक्ति बुद्धि बाह्य जगत में फंसकर व्यर्थ कर देते हैं हमारे प्रकाश से अच्छे लोग आनन्दित हों
आचार्य जी ने पुणे में संपन्न हुई बैठक की चर्चा की साथ ही लखनऊ और कानपुर की बैठकों का उल्लेख भी किया
आचार्य जी ने बताया कि सीता स्वयंवर में भगवान् राम का कार्य अद्भुत रूप से प्रकट हुआ है
तुलसीदास जी ने राम का स्वरूप राष्ट्र के रूप में चित्रित कर दिया
युग -प्रभा संग्रहणीय हो इसके लिए संपादक मण्डल प्रयास करे
इसके अतिरिक्त भैया विवेक भागवत जी भैया प्रवीण भागवत जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आत्मीयता प्रेम के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें