7.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०५ वां* सार -संक्षेप


जन्म से शरीर के बिछोह तक यात्रामय जीवन चलता रहता है सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर की भी यात्रा होती है यात्रा से विश्राम के लिए जो लोग मुक्ति की कामना करते हैं ऐसे अनेक लोगों से भारतवर्ष भरा पड़ा है अद्भुत है यह आर्ष चिन्तन


भैया प्रवीण भागवत जी के चतुर्दश तरु आंदोलन ( Fourteen Trees Foundation ) की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि भैया प्रवीण जी की परिकल्पना में है कि एक व्यक्ति यदि चौदह वृक्ष लगा दे तो उसे प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है



उनके अनुसार २८% भूमि  बंजर है उसको हरा भरा करने का आंदोलन छेड़ रखा है और उसमें उन्होंने काफी काम कर डाला है


इसी प्रकार भैया संतोष मिश्र जी भी एक काम में जुटे हुए हैं  ऐसे लोग आनन्दित कर देते हैं दीनदयाल विद्यालय के ये खिले हुए सुमन अपनी सुगन्ध फैला रहे हैं


आचार्य जी ने बताया कि भावना के कारण ही पुणे में बीस के आसपास युगभारती के सदस्य एकत्र हुए


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस भावना को हम व्यर्थ में न जाने दें इसे विचारों में आरोहित करें और विचारों को क्रियाओं में परिवर्तित करें 

जीवन की भाव विचार क्रिया की त्रिवेणी को सार्थक करना ही युगभारती का उद्देश्य है


हमारा पूर्ण उद्देश्य है कि हम राष्ट्र के लिए जाग्रत हों कर्मशील बनें प्रयत्न करते चलें और सफलता के लिए पूर्णरूपेण आश्वस्त हों


तुलसीदास जी का जीवन हमें भावुक कर देता है  तुलसीदास जी का जीवन राममय हो गया उनके राम संपूर्ण राष्ट्र के पुंजीभूत स्वरूप हैं


मानस नाम का अद्भुत ग्रंथ उन्होंने रच डाला तुलसीदास जी कहते हैं यह हनुमान जी ने लिखवाया


आचार्य जी ने इसे भी स्पष्ट किया कि सबसे पहली राम कथा अनंतभक्त हनुमानजी ने लिखी थी, जिसे उन्होंने अपने नाखूनों से एक चट्टान पर लिख दिया था, इसे हनुमद रामायण कहा गया 

महर्षि वाल्मीकि जी ने कहा 

अब मेरी लिखी रामायण को महत्व नहीं मिलेगा हनुमान जी ने वह सब कुछ लिख दिया है  जिसके आगे मेरी रामायण कहीं नहीं टिक रही तो यह सुनकर हनुमानजी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि आप चिंता ना करें और यह कहकर हनुमान जी ने अपनी कथा नष्ट कर दी



भक्त ऐसे ही होते हैं वो चाहे राष्ट्र -भक्त ही क्यों न हों वो अपना यश नहीं चाहते वे अपने इष्ट का यश विस्तार चाहते हैं



तुलसीदास राम जी का शर और चाप कभी नहीं छुड़वाते कारण स्पष्ट है इनकी अत्यन्त आवश्यकता है उस समय भी थी आज भी है

भगवान् राम के हाथ में धनुष बाण से भक्त निश्चिन्त है लेकिन निश्चिन्त सो नहीं रहा है वह सेवा में लगा है 

बाल कांड में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दोहा है 


गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।

बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥18॥



जो वाणी और उसके अर्थ  और जल / जल की लहर के समान कहने में अलग अलग हैं, लेकिन वास्तव में एक हैं, उन सीताराम के चरणों की मैं वंदना करता हूँ, जिन्हें दीन और दुःखी अत्यन्त प्रिय हैं


आचार्य जी ने सीता स्वयंवर का प्रसंग बताया


और परामर्श दिया कि इसका अध्ययन करें इसके बहुत से अर्थ निकलेंगे जब उन्हें हम सुलझाएंगे तो हमारे अन्दर शक्ति का स्रोत उत्पन्न होगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

बांग्लादेश के राज्य विप्लव का उल्लेख क्यों किया भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें