8.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०६ वां* सार -संक्षेप

 शक्ति की अनुभूति और अभिव्यक्ति अत्यन्त आवश्यक है...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०६ वां* सार -संक्षेप


जो महापुरुष होते हैं उन्हें सामान्य व्यक्ति पूर्णरूपेण जान नहीं सकते किन्तु वे श्रद्धा के आधार हो जाते हैं  जिसके प्रति हमारे मन में अपार श्रद्धा हो और उसका शरीर हमारे सामने तिरोहित हो जाए तो हम अपनी श्रद्धा के कारण उसे चित्र या मूर्ति के रूप में देखना ही चाहेंगे और इस तरह 

भारतवर्ष में मूर्तिपूजा का प्रचलन हुआ

मूर्तिपूजा में एक मार्ग है प्रपत्तिमार्ग जो भक्तिमार्ग का ही विकसित रूप है l इसका प्रादुर्भाव दक्षिण भारत में १३वीं शताब्दी में हुआ। किसी देव के प्रति क्रियात्मक प्रेम या तल्लीनता भक्ति  है जबकि प्रपत्ति निष्क्रिय सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है।



ईश्वर प्राप्ति या लक्ष्य प्राप्ति के भिन्न भिन्न मार्ग हैं 


श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र एवं उपनिषदों को सामूहिक रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है जिनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों मार्गों का तात्त्विक विवेचन किया गया है। ये वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ  हैं। इनमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, श्रीमद्भगवद्गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्र को न्याय प्रस्थान कहते हैं।


अद्वैत वेदान्त के एक महान दार्शनिक हुए हैं 

मधुसूदन सरस्वती 

इनका एक ग्रंथ है 


प्रस्थानभेद

उसमें सारे शास्त्रों का सामञ्जस्य करके उनका अद्वैत में तात्पर्य प्रदर्शित किया गया है। यह निबन्ध अत्यन्त संक्षिप्त होने पर भी अद्वितीय प्रतिभा का द्योतक प्रतीत होता है


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रपत्तिमार्ग में प्रविष्ट होने पर क्या अनुभूति होती है


स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा क्या आपने ईश्वर देखा तो उनका उत्तर था हां देखा है विवेकानन्द को बहुत आश्चर्य हुआ लेकिन उन्होंने विश्वास किया 

हम विश्वास से डिगे रहते हैं किसी पर विश्वास नहीं इसी कारण आत्मविश्वास नहीं


अविश्वास की व्याधि बढ़ती ही  जा रही है सवाल दर सवाल आते हैं उत्तरों से हम संतुष्ट नहीं होते अविश्वास का उद्भव और विस्तार इसी कारण होता है


सनातन धर्म को समाप्त करने का षड़यंत्र  चल रहा है हमें सचेत होने की आवश्यकता है और सचेत करने की भी 

इस कारण संगठन का महत्त्व बढ़ जाता है अतः हम संगठित रहें जूझने के लिए भी तैयार  रहें 

सहयोग आत्मविश्वास संयम के साथ शक्ति की उपासना करें


सनातन धर्म के प्रचार में भी कई संस्थाएं कई लोग लगे हैं जैसे स्वामीनारायण संप्रदाय,   हरे कृष्ण आन्दोलन आदि


आचार्य जी ने बांग्लादेश में ISKCON मन्दिर को जलाने की घटना का उल्लेख किया 

देवासुर संग्राम आदिकाल से चल रहा है संघर्ष संसार का यथार्थ है इस संघर्ष में विजयी होने के लिए शक्ति की उपासना आवश्यक है 

शक्ति उपासना का अर्थ है हमारा शरीर स्वस्थ हो हमारा परिवार संभला रहे आसपास के घरों से भी मधुर संबन्ध हों उनका सहयोग भी मिले 

राष्ट्रीय जीवन की ज्वाला  प्रज्वलित हो रही हो

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरु जी का नाम क्यों लिया अधन्ना पहलवान कौन था जानने के लिए सुनें