प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११०७ वां* सार -संक्षेप
भारतीय जीवनदर्शन का एक मूलमन्त्र है कि
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
जो कुछ हमारे मन में है यदि वह हमारे जीवन में प्रविष्ट हो जाए तो हमें प्राप्त हो जाता है और हमारी दृष्टि भी वही हो जाती है
जैसी दृष्टि हो जाती है वैसी ही उसकी सारी सृष्टि बन जाती है
आचार्य जी बताते हैं कि दीनदयाल जी की हत्या का समाचार एक ऐसी परिस्थिति में मिला कि मन हिल गया जहां जहां यह समाचार पहुंचा वहां वहां के लोगों को आहत कर गया एक ऐसे सीधे सरल अजातशत्रु की हत्या हो जाती है जिससे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचती
हत्या इस कारण हुई कि उनका एक सात्विक विचार पल्लवित हो रहा था जो हमारे सनातन को जाग्रत करने वाला था यह हमें पीड़ित कर देता है
यह विचार करें कि मैं कौन हूं
बीज से वटवृक्ष का विस्तार हूं मैं
मैं जगत हूं जागरण का सार हूं मैं
कर्म का संदेश जग व्यवहार भी हूं
और जीवनमन्त्र भाव विचार का संसार हूं मैं
भाव का विस्तार सीमातीत जब जो जाएगा
और अपना सत्व सबके साथ जब मिल जाएगा
खिल उठेगी प्रकृति पूरे विश्व की आनन्द से
और बन्धनमुक्त विचरेंगे सभी स्वच्छन्द से
आज भी विषम परिस्थितियां हैं और हमें अपने दीपक को जलाना है हमें संगठित रहना है हमारा सत्व सबके साथ मिल सके यहां सब का अर्थ है सजातीय लोग अर्थात् सभी राष्ट्र -भक्त सनातन धर्म को मानने वाले लोग
इसका प्रयास करना है
हमें शुभ भाव को विस्तार देना है इसके लिए भावनाओं को सात्विक वातावरण में अनुभव करने की आवश्यकता है और जब सात्विकता चरम पर पहुंचती है तो हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
जिस प्रकार भगवान् राम ने यही काम किया उन्होंने संगठन किया दुष्टों का नाश किया व्यथित भी हुए कि एक व्यक्ति अत्यन्त गुणसंपन्न होने के बाद भी एक दुर्गुण के कारण अपने वंश सहित मारा गया
हमें अपने जीवन क्रम में परिवर्तन लाने की चेष्टा करनी चाहिए हम अपने संगठन में प्रभावी तभी होंगे जब हम खानपान पर ध्यान देंगे अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखेंगे
हमारे संगठन को दुनिया जान सके इसके लिए अत्यधिक त्याग समर्पण और श्रम की आवश्यकता होगी
आचार्य जी ने भाव के विस्तार के कारण बढ़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबन्धित माखी का एक प्रसंग बताया और बताया कि अपने गांव सरौंहां में भी संघ की शाखा लगती थी
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा का चतुष्टय हमें अपने ऊपर भी लागू करना है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया
अधिवेशन में हमें क्या ध्यान में रखना है शाप देने की शक्ति हमारे भीतर कैसे आएगी जानने के लिए सुनें