10.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३९ वां* सार -संक्षेप


हमारे ऋषियों की परम्परा अद्भुत है यह परम्परा जिसमें जिस मात्रा में प्रवेश कर जाती है उसका ज्ञान उतना ही सहज, सरल और गहन हो जाता है अर्थात् यह परम्परा ज्ञान को सहजता सरलता के साथ गहनता की ओर प्रेरित कर देती है 

क्योंकि जो विद्या और अविद्या - इन दोनों को ही एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमरता प्राप्त कर लेता है।हम इस संसार की विविध जानकारियों को प्राप्त करते हुए उस ज्ञान के आरोहण की ओर उन्मुख होवें जहां से हमें ज्ञात होगा कि हम कौन हैं कहां से आए हैं और हमारा उद्देश्य क्या है इसी का नाम मनुष्यत्व है इस मनुष्यत्व देवत्व ईश्वरत्व की अनुभूति कराने वाली परम्परा को वेद, ब्राह्मणों आरण्यकों उपनिषदों गीता मानस से हमारे देश ने ग्रहण किया इस ज्ञान को सुरक्षित करने के लिए भक्ति की आवश्यकता होती है ज्ञान से हमारा अंधकार दूर होता है भक्ति से उस ज्ञान को सुरक्षित करने का भाव उत्पन्न होता है परमात्मा के बने इस संसार में सज्जनों के साथ दुष्ट भी हैं इस कारण दुष्टों से हमें अपनी रक्षा भी करनी है और उस रक्षा के लिए शक्ति शौर्य पराक्रम आवश्यक है समय पर इनका उपयोग भी आवश्यक है यह है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अत्यन्त ही तात्विक विषय है  यह और इसको जब हम व्यावहारिक धरातल पर उतारेंगे तो सदैव हमें लगेगा कि भाव विचार और क्रिया का जितना अधिक संतुलित रूप हमारे अंदर होगा उतना ही हम आनन्द में रहेंगे 

संतुलन न होना हमें कष्ट देगा 

मनुष्य के शरीर को आनन्दमय बनाने के लिए कुछ नियम बनाए गए सूत्र ग्रंथ लिखे गए स्मृतियां बनाई गईं 

शिक्षा में इन सबको कैसे सम्मिलित किया जाए यह हम लोगों के लिए चिन्ता का विषय है 

हम लोग मिलजुलकर ऐसा उपाय खोजें कि भावी पीढ़ी  को उत्साह उमंग उल्लास के प्रभात का दर्शन हो वह केवल धनार्जन में ही न लगी रहे उच्छृङ्खलता की हदें न पार करती रहे

भावों विचारों क्रियाओं को सामञ्जस्यपूर्ण बनाना और आनन्दपूर्ण बनाना शिक्षा का धर्म और मर्म है शिक्षा श्रुतिमय होती है जब हम वह शिक्षा नहीं ग्रहण करेंगे तो अपनी संतानों को भी नहीं शिक्षित कर पाएंगे पाठ्यक्रम, विधान, दिनचर्या, खानपान सारे विचारणीय विषय हैं स्वास्थ्य भी आवश्यक है क्योंकि शरीर साधन है इस कारण नियम आवश्यक हैं हम स्वस्थ हैं अर्थात् अपने में स्थित हैं तो यह अच्छा है इसी तरह स्वावलम्बी जीवन भी आवश्यक है सुरक्षा तो महत्त्वपूर्ण है ही 

आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए भी कुछ बातें बताईं 

 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अनसंग हीरोज 'इंदु से सिंधु तक' (देवेन्द्र सिकरवार कृत ) की चर्चा क्यों की मानस के चार श्रोता चार वक्ता का विषय क्यों उठाया जानने के लिए सुनें