9.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३८ वां* सार -संक्षेप


.इन सदाचार संप्रेषणों में सार रहता है ये कदापि सारहीन नहीं होते

भारतवर्ष में सृष्टि के रहस्यों को जानने का सर्वाधिक गहन अध्ययन हुआ है इसी कारण व्याकुल तत्व भारत भागता है लोभी तो भारत भागता ही है 

हमारे ऋषियों ने सृष्टिकर्ता और सृष्टि का साक्षात्कार किया 

 ऋषियों के लिए कहा जाता है 

ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः

मन्त्र अर्थात् सूत्र 

हमारे यहां सूत्र ग्रंथ हैं ये अत्यन्त सूक्ष्म शैली में लिखे गए शास्त्रीय ग्रंथ हैं और इनका विस्तार अपेक्षित रहता है 

 मनुष्य वाणी से ही अभिव्यक्ति करता है किसी की वाणी अत्यन्त प्रभावशाली होती है और किसी की वाणी निष्प्रभावी 

वाणी का व्यवहार विधिवत् और सात्विकता के साथ किया जाता है तो यह प्रभावी होता है और आश्रय देने वाला होता है इसी वाणी में श्राप और वरदान भी हैं जैसे मां सती का श्राप 

हमारी संस्कृति यज्ञमयी संस्कृति है अर्थात् देने की संस्कृति है यज्ञ का अर्थ है वस्तुओं का वितरण और विचारों भावों का वितरण 

अध्यापन एक यज्ञ ही है 

यज्ञ संसार स्वर्ग दृश्य अदृश्य को पाने का साधन बन गया वैदिक ग्रंथों में यज्ञीय विधान हैं 

 जैसा कि हम जानते हैं कि आदिशक्ति ने अपनी शक्तियों को तीन भागों में विभक्त किया 

ब्रह्मा विष्णु महेश 

ब्रह्मा ने सृष्टि के संचालन के लिए सबसे पहले यज्ञ किया

एक विद्वान् का नाम है यज्ञमूर्ति


वे एक अद्वैतवादी प्रौढ़ विद्वान् थे और रामानुज के समकालीन हुए 

 रामानुज स्वामी की बढ़ती हुई ख्याति को सुनकर यज्ञमूर्ति श्रीरंगम में आये और वहां रामानुज के साथ यज्ञमूर्ति का सोलह दिन तक शास्त्रार्थ होता रहा जिसमें कोई एक दूसरे को पराजित करता हुआ नहीं दिखाई दे रहा था। अंत में रामानुज ने ‘मायावादखण्डन’ का अध्ययन किया और उसकी सहायता से यज्ञमूर्ति को हरा दिया 

फिर यज्ञमूर्ति ने वैष्णव मत स्वीकार लिया।

यज्ञमूर्ति के द्वारा रचित ‘ज्ञानसागर’ तथा ‘प्रमेयसागर’ नामक दो ग्रंथ तमिल भाषा में हैं।

शंकराचार्य भक्त और अद्वैतवादी दोनों थे 


आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की हमारे अधिवेशन का उद्देश्य स्पष्ट है भारत के बारे में सोचना क्योंकि यह प्रकाश की खोज में लगा है अर्थात् ज्ञान की खोज में रत है 


इसके अतिरिक्त आचार्य  जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी की चर्चा क्यों की सामगान क्या है जानने के लिए सुनें