प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४१ वां* सार -संक्षेप
यह हमारा सौभाग्य है कि अत्यन्त क्षमताशील विद्वान् ज्ञानी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के उपासक आचार्य जी से हम आज भी संयुत हैं
एक अद्भुत यज्ञ करने में रत आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य हमें प्रेरित करते हैं आचार्य जी हमसे अपेक्षा करते हैं कि अन्य लक्ष्यों के साथ प्रेम आत्मीयता का विस्तार भी हमारा एक लक्ष्य होना चाहिए किस समय कौन सा काम आवश्यक है यह हमें पता होना चाहिए कलुषता को मिटाने का प्रयास हमें करते रहना चाहिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए गहरी दृष्टि रखते हुए सुजनों और स्वजनों को पहचानने की क्षमता हमारे अन्दर होनी चाहिए हनुमान जी के भाव -प्रसाद से सबको आच्छादित करने का प्रयास करना चाहिए
हमारे जीवन में, परिवेश में अनेक उलझाव आते रहते हैं और ये उलझाव हमारे प्राणिक जीवन को प्रभावित करते हैं इसका प्रभाव कम से कम हो तब हम अपने कर्ममय जीवन जीने का उद्देश्य पूर्ण कर पाते हैं
वह विभु आत्मा है हम अणु आत्मा है अंशांश में ही हमारे अन्दर विभुता की उपस्थिति की अनुभूति यदि हमें है तो हम अपने जीवन के सद् अभ्यास को निरन्तर करते रहेंगे हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिए कि हमें मनुष्य का जीवन प्राप्त है जिसमें लेखन अध्ययन अध्यापन स्वाध्याय आदि सब संभव है भारत भूमि की यह विशेषता है कि सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी विशेष हो जाता है हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म संपूर्ण विश्व के मार्गदर्शक भारत में हुआ है
अधरों पर वंशी उंगली पर चक्र सुदर्शन
यही भरत -भू का है अनुपम जीवन -दर्शन
हम सब हिन्दु -बन्धुओं को इसका प्रबोध हो
यही प्रयास और अभ्यास रहे हर कण क्षण
भ्रमित और भयभीत अर्जुन को भगवान कृष्ण समझाते हैं कि युद्ध क्यों आवश्यक है
युद्ध एक कर्म है
गीता -ज्ञान से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्य का बोध होना ही चाहिए
समाज हित के लिए कार्य करते समय हमें भ्रमित भयभीत नहीं होना चाहिए अधिवेशन के माध्यम से हम समाज को जाग्रत करने जा रहे हैं
आचार्य जी ने संगठन के अर्थ को भी स्पष्ट किया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया भाषण देते समय किसे अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला जानने के लिए सुनें