प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४२ वां* सार -संक्षेप
सदाचार -पीठ पर बैठकर नित्य आचार्य जी जो प्रयास कर रहे हैं वह अद्भुत है यह हमारा सौभाग्य है कि अपने व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए भक्ति शक्ति बुद्धि विश्वास त्याग समर्पण आत्मीयता संयम प्राप्त करने के लिए हम नित्य सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं हमें इस लाभ से वञ्चित नहीं रहना चाहिए कभी कभी हमें इनमें राम की कथा के दर्शन भी होते हैं इस कथा को आत्मसात् कर अपनी कथा बांचने के लिए हमें कठोर प्रयास करने चाहिए हमें यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि हम कौन हैं कहां से आये हैं हमारा क्या कर्तव्य है
हमें अपने खानपान में भी संयम रखना चाहिए
उचित और संयमी भाषा का प्रयोग करना चाहिए
अपनी आत्मशक्ति को पहचानना चाहिए
परिस्थितियां विषम हैं और हम लोग एक पवित्र उद्देश्य लेकर चल रहे हैं ऐसी विषम परिस्थितियों में, विपत्ति काल में पवित्र उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए और धैर्य न त्यागते हुए हमें कर्मरत रहना चाहिए क्योंकि हमारे यहां कर्म का एक विशिष्ट सिद्धान्त विधान चिन्तन है उसकी एक बहुत लम्बी परम्परा है बीते कल का कर्म आज का भाग्य बनता है
सुस्पष्ट सिद्धान्त को प्रकट करती तुलसीदास जी की एक अद्भुत अर्धाली है जिसमें विपत्ति काल में परीक्षण हेतु धैर्य पर जोर दिया गया है
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
हम आत्मशक्ति की अनुभूति करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं हमारे हौसले को बढ़ाती आचार्य जी की यह कविता देखिए
क्या कर लोगे !
जब चिन्तन वैरागी बन वन-वन भटकेगा
कर्मठता कुण्ठित होकर दम तोड़ चलेगी
धर्म-ध्वजाएँ भीग उठेंगी लिप्साओं से
पछुआ की लपटों से पुरवाई झुलसेगी
तब विश्वास छला जाएगा विद्वेषी सा, क्या कर लोगे ।।१।।
जब पौरुष विज्ञापन बनकर रह जाएगा
माटी मोल न पूछी जाएँगी निष्ठाएँ
मन को बहलाने वाले कवि छंद रचेंगे
शरमाएँगी अपने ही ऊपर उपमाएँ
तब उल्लास चला जाएगा संदेशी सा, क्या कर लोगे ।।२ ।।
जब संयम से स्वाभिमान अपमानित होगा
सत्य शील में दबकर पथ पर दम तोड़ेगा
बिलखेंगी बेज़ार समय की मर्यादाएँ
अपनापन अपनों से अपना मुँह मोड़ेगा
तब प्रयास कुचला जाएगा संतोषी सा, क्या कर लोगे ।।३।।
सदाचरण परिभाषित होगा छल-छन्दों से
त्याग दैन्य का जब चर्चित पर्याय बनेगा
आत्महीनता पाँव तोड़कर बस जाएगी
जब कुटुम्ब बस केवल एक निकाय रहेगा
निश्छल हास चला जाएगा परदेशी सा, क्या कर लोगे ।।४।।
गीत गुलामी की भाषा के जब भायेंगे
सिमट समाएगा जब स्वत्व पेट के भीतर
संबंधों को अनुबंधों में बँधना होगा
होगा जीवन अद्भुत छिन बटेर छिन तीतर
तब मधुमास रुला जायेगा प्रतिवेशी सा, क्या कर लोगे ll ५ ll
हम कर लेंगे आत्मशक्ति की आहुति बनकर
समय परिस्थिति भांप परखकर
दिशा दृष्टि रख भावी की
भविष्य रचना इतिहास बांचकर
और संगठन को युग का अवतार मानकर,भाग्य रचेंगे
ये कर देंगे
ll ६ ll
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजकुमार जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें