प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४३ वां* सार -संक्षेप
मनुष्य परमात्मा की एक अद्भुत रचना है और उसका स्वभाव भी अद्भुत रहता है हमें जो सनातनधर्मी हैं जो कहते हैं
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव
ध्यानपूर्वक अपने में परिवर्तन लाना होगा
क्योंकि हम जितने भी सनातन धर्मी हैं अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जितनी अधिक हमारे अन्दर संवेदनशीलता है उतना ही हम अहंमन्यता (egoism ) से भी प्रभावित हैं इसे अच्छा शब्द भी कह सकते हैं और दुश्शब्द भी अहंकार तत्त्व भी है और संसार का यह एक रूप भी समझा जा सकता है जिनमें जितनी सूक्ष्मता है उनमें उतनी ही अधिक शक्ति है और शक्ति है तो संवेदनशीलता है इस संवेदनशीलता का विपरीत प्रयोग कष्ट देता है
हम युगभारती के सदस्य हैं और कुछ विशेष उद्देश्यों को लेकर चल रहे हैं
हमारे उद्देश्य हैं समाज हित के कार्य करने देश हित के कार्य करने अपनी सनातनधर्मिता को बचाए रखना जिसे नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए और संसार के तिमिर को दूर करना
इस कारण हमें संगठित रहने की आवश्यकता है जिसके लिए हमें अपनी सहन करने की शक्ति में वृद्धि करनी होगी हमें संगठन को हानि पहुंचाने वाला कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए
संगठन पर दुष्प्रभाव न पड़े इसके लिए हमें अपनी कमियों को भी देखना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने गांव के किस व्यक्ति की चर्चा की जिसे भैया डा अमित गुप्त जी को दिखाना है भैया हरीन्द्र जी भैया अरविन्द जी भैया डा उमेश्वर जी का नाम क्यों लिया परमाणु बम का उल्लेख क्यों हुआ आखिरी चक्कर क्या है जानने के लिए सुनें