17.9.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११४६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी )विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११४६ वां* सार -संक्षेप


हनुमान जी की कृपा से सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए, दिन भर की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, संसार से संघर्ष करते हुए तत्त्व की खोज हेतु, एकात्मता को समझने के लिए और शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति के लिए हमें ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए जिनमें परमात्मा, परमात्मा की सत्ता, सामाजिक विचार, कुछ ऐतिहासिक घटनाएं, प्रसंग आदि विषयों का समावेश रहता है


परमात्म सत्ता की लीला अद्भुत है हम आत्मा हैं वह परमात्मा है काव्यानन्द में झूमते विभिन्न कवियों के अनुसार परमात्मा के प्रति आत्मा के भाव देखिए ..


तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,

तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।



तू दयाल, दीन हौं,

तू दानी, हौं भिखारी ।

हौं प्रसिद्ध पातकी,

तू पाप पुंज हारी ॥


नाथ तू अनाथ को,

अनाथ कौन मोसो ।

मो सामान आरत नाही,

आरती हर तोसो ॥


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,..

हमारे सनातन धर्म में 

पर्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं आज अनन्त चतुर्दशी है अनन्त अर्थात् जिसका अन्त नहीं होता 

बलराम को भी अनन्त कहा गया है विष्णु भगवान् जिस पर शयन करते हैं वह भी अनन्त है इसी कारण उन्हें अनन्तशायी कहा गया है ऋषियों की तपस्थली कश्मीर में अनन्तनाग स्थान है शेषनाग झील है समय का परिवर्तन देखिए कश्मीर को किसी का हिस्सा बताया जाता है लेकिन हम सनातन धर्मी समय के परिवर्तनों से व्याकुल नहीं होते 

आचार्य जी ने यह भी बताया कि एक अनन्त मिश्र नामक विद्वान् भी हैं जिन्होंने उड़िया भाषा में महाभारत का अनुवाद किया है


हमारा दुर्भाग्य रहा कि हमारे सनातन धर्म को नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए वेद वैदिक संस्कृत में हैं एक लौकिक संस्कृत है जिसका व्याकरण वैदिक से भिन्न है हमारे यहां मूल संस्कृत से बनी अनेक भाषाएं हैं लेकिन उनके महत्त्व को कम कर उनकी उपेक्षा कर अंग्रेजी पर बल दिया गया यह दुर्भाग्य है 

यह छल किया गया जिसे पहचानना हमारा कार्य और व्यवहार है 

इस छल को पहचानते हुए हम राष्ट्रीय अधिवेशन में आत्मबोधोत्सव मनाने जा रहे हैं अपने चिन्तन से  गम्भीर परम्परा के वाहक हम समाज को प्रभावित करने जा रहे हैं 


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

इसके अतिरिक्त भैया पुनीत जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें