प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११४७ वां* सार -संक्षेप
मन, बुद्धि,विचार आदि निधियां मनुष्य को ही प्राप्त हैं हम सौभाग्यशाली हैं कि हम मनुष्य हैं इस मनुष्य को जब शिक्षा प्राप्त होती है तो उसे मनुष्यत्व का बोध होता है किन्तु ऐसी शिक्षा उसे प्राप्त हो जो उसे जाग्रत करे,उत्थित करे, प्रबोधित करे उसमें विश्वास श्रद्धा आत्मीयता सेवा समर्पण आदि गुण विकसित करे
शिक्षा मात्र पाठ्यक्रम का पारायण नहीं है जो बेचारगी पैदा करे ऐसी शिक्षा किस काम की शिक्षा अच्छे अंक दिलाना ही नहीं है शिक्षा मनुष्य के अन्दर के मनुष्यत्व को जाग्रत करने का एक उपाय है
शिक्षा वह संस्कार है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित करके अणु से विभु तक की यात्रा की उसे दृष्टि देता है इसी कारण इस तरह की शिक्षा से शिक्षित लोगों में कुछ वैशिष्ट्य दिखाई देता है जिन्हें ऐसी शिक्षा प्राप्त नहीं होती वे व्याकुल रहते हैं शिक्षा में शिक्षक की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है शिक्षक और प्रशिक्षक में अन्तर होता है कुछ जन्मजात शिक्षक होते हैं ऐसे बच्चे जिनमें शिक्षकत्व के गुण हों उन्हें खोजना चाहिए मनोविज्ञानशालाओं के
मनोवैज्ञानिक अच्छे विद्यालयों में जाकर छोटे बच्चों की जांचपरख करें उनमें खोजें जिनमें शिक्षकत्व हो अभिभावकों को प्रेरित करें शिक्षा की छह से आठ साल की एक प्रणाली विकसित की जाए अंग्रेजी माध्यम का भ्रम फैल गया यह भोग हम भोग रहे हैं जब तक इस भोग से हम दूर नहीं होंगे तब तक यह भोग रोग बना रहेगा शिक्षा पर चिन्तन अत्यावश्यक है
शिक्षा के कारण ही भारत विश्वगुरु कहलाया बहुदेववाद के पोषक भारत देश में हम जन्मे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमारे यहां ३३ कोटि देव हैं जो हमें बिना शर्त के देता है वह देवता है दाता और देवता में अन्तर है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विद्यालय में हनुमान जी की प्राणप्रतिष्ठित मूर्ति स्थापित करने के पीछे क्या उद्देश्य था यह बताया वह उद्देश्य क्या था हनुमान जी के कारण हमें क्या लाभ मिला आचार्य जी ने भैया पंकज सिंह जी का नाम क्यों लिया भुट्टो से संबन्धित भैया संजय टंडन जी का क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें