25.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५४ वां* सार -संक्षेप

इस समय परिस्थितियां विषम हैं आदर्शों ने दम तोड़ रखा  है मर्यादाएं हताश हैं राम के शर तूणीर में शयन कर रहे हैं धर्मदंडी भोग लिप्सा में रमे हैं निष्ठाएं समय का साथ दे रही हैं घुप अंधेरे में अजीब सी भगदड़ मची है मुखों पर छल के मुखौटे चढ़े हैं  ऐसे में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए 

यह हमारा सौभाग्य है कि अविश्वासों और भ्रमों के भंवर में फंसे हम लोगों को उचित मार्ग दिखाने में युगभारती के विशाल परिवार के प्रत्येक सदस्य को बांधे रखने की अद्भुत क्षमता से सम्पन्न आचार्य जी नित्य रत रहते हैं 

आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हमें अध्ययन स्वाध्याय के साथ अपने विचारों का लेखन भी करना चाहिए और आत्मस्थ होने की चेष्टा करनी चाहिए 

हमारी शिक्षा जिसका आधार हमारे ग्रंथ जैसे वेद पुराण उपनिषद् मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति आदि होने चाहिए थे को बहुत दूषित किया गया 

आचार्य जी  जिन्होंने आज भी अत्यन्त विषम परिस्थितियों में फंसे रहने के बाद भी अपने शिक्षकत्व को जगाए रखा है निम्नांकित दोहों में शिक्षा की दुर्दशा व्यक्त कर रहे हैं 


शिक्षक दरबारी हुआ शिक्षा रोटी दाल 

खोज खोज कर खो गया भारत मां का लाल


बाजारू शिक्षा हुई शिक्षक हुआ दलाल 

इस अद्भुत व्यापार में तिकड़म मालामाल



जब कि शिक्षा वास्तव में है क्या 

इन दोहों में देखिए 


शिक्षा मानवधर्म है जग निस्तारण मर्म 

शिक्षा की भागीरथी सुलभ कराती सर्म



शिक्षा ही संतोष है शिक्षा विभव अपार 

शिक्षित जन ही जानते उचित जगत व्यवहार


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया विभास जी का नाम क्यों लिया 

श्री कृष्ण बिहारी जी पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ  किसने आचार्य जी को आचार्य जी की एक पुरानी फाइल खोज कर दे दी जानने के लिए सुनें