प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११५५ वां* सार -संक्षेप
हम परमात्मा से अलग नहीं हैं हम उसी के द्वारा निर्मित और संचालित हैं हम आविर्भाव और तिरोभाव का एक भाग हैं इसके अतिरिक्त हम कुछ नहीं हैं कुछ नहीं में चिन्तन करते करते यदि हम जाएं तो यह एक अनुभूति का विषय है कि हम क्या हैं अनेक बार प्रतीत होता है कि हम बहुत कुछ हैं और अनेक बार ऐसा लगता है कि हम कुछ भी नहीं हैं
हम एक ऐसा रहस्यात्मक तत्व है जिसे सुस्पष्ट बुद्धि से ही समझा जा सकता है यह सुस्पष्टता ही संस्कार है
हमें अपनी प्रतिष्ठा सम्मान की अनुभूति रहती ही है यही आत्मबोध का एक लघु स्वरूप है आत्मबोधोत्सव मनाना ही अध्यात्म है
एक आनन्द का तत्त्व है कि हमें कोई अपना प्रिय लगता है मां को जीवन भर यही अनुभव होता है भले ही उसका पुत्र उस पर ध्यान न दे किन्तु जिनके मन में भी मां पिता गुरु आदि के प्रति अपार श्रद्धा होती है वे उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखते इसी कारण इन्हें सत्पुत्र कहा जाता है भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति अद्भुत है कि हम संपूर्ण देश को अपनी मां मानते हैं इसके प्रति हमारा वात्सल्य प्रेम आत्मीयता श्रद्धा विश्वास अखंडित रूप से विद्यमान है
आचार्य जी ने आत्मदर्शन को भी स्पष्ट किया
रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥
अर्थात्
भगवान् राम तो विशुद्ध प्रेम के द्वारा ही रीझते हैं, परन्तु इस जगत में मुझसे अधिक मूर्ख और मलिन बुद्धि वाला अन्य कौन होगा ?
हमारी संस्कृति में प्रेम आत्मीयता पर बल दिया गया है हम आस्तिक दर्शनों को भी मानते हैं और नास्तिक दर्शनों को भी
हम बलपूर्वक किसी पर कुछ थोपना नहीं चाहते
इस्लाम इससे भिन्न है
हर दिशा में संघर्ष ही संघर्ष चल रहा है कई युद्ध चल रहे हैं हम शान्ति चाहते हैं हमारे यहां प्रवचन चल रहे हैं
अद्भुत है भारत की भूमि यहां की संस्कृति यहां का दर्शन यहां के भाव और विचार
हमें इनकी अनुभूति करनी चाहिए
जीवन इसी तरह जीना चाहिए प्रेम आत्मीयता आदि के आधार पर द्वेष घृणा से इतर
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री अभय (दीनदयाल शोध संस्थान ), भैया पंकज जी भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें