मिले जितने कदम उनको संजोकर एक रखना है
जहाँ जो रुक गए उनको समझना है परखना है
अभी मंजिल हमारी दूर है पर आयेगी निश्चित
यही संकल्प हम सबको अहर्निश नित्य रखना है।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११५६ वां* सार -संक्षेप
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥ 6॥
यह नाम रूपात्मक जगत है जहां चेतन अचेतन दोनों पदार्थ हैं पद का अर्थ है नाम और पदार्थ का अर्थ है रूप
नाम सुना तो रूप की चिन्ता है और रूप देखा तो नाम की चिन्ता है
हमारे यहां चेतन और अचेतन दोनों का चिन्तन हुआ है अभ्यान्तरिक चिन्तन को दर्शन कहते हैं और बाह्य चिन्तन को विज्ञान
और ये दोनों एक हैं
भारत में बारह दर्शन प्रचलित हुए छह आस्तिक छह ही नास्तिक
आस्तिक दर्शन हैं न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त
नास्तिक दर्शन हैं
वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार, माध्यमिक, चार्वाक और आर्हत
वेद को प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को ’आस्तिक’ तथा वेद को अप्रमाणिक मानने वाले दर्शन को ’नास्तिक’ कहा जाता है।
संपूर्ण विश्व में इन्हीं का विस्तार है
आस्तिक दर्शनों में अन्त में है वेदान्त
अर्थात् ज्ञान का अन्तिम भाग
सारा विश्व प्रपंच इस वेदान्त का तत्व है यह ब्रह्म का अंश है वेदान्त में ही शुद्धाद्वैत द्वैत अद्वैत विशिष्टाद्वैत केवलाद्वैत आदि हैं
दुर्भाग्य से हमें अत्यधिक भ्रमित कर दिया गया
और इनका अध्ययन करने में हमारी अरुचि हो गई
विश्व में अन्यत्र ऐसा ज्ञान का भण्डार नहीं है
आचार्य जी हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन विचार प्राणायाम लेखन आदि के लिए तो नित्य प्रेरित करते ही हैं इसके साथ ही आत्मशक्ति और बाहुबल की अनिवार्यता पर भी जोर देते हैं
शत्रु को भयभीत करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म आज के समय की मांग है शौर्य की उपेक्षा करने पर अध्यात्म अधूरा है
शौर्य संसार का धर्म है और संपूर्ण जीवन का मर्म है अपने अन्दर रामत्व का प्रवेश कराएं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया मनीष जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें