प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११३२ वां* सार -संक्षेप
हमारे ऋषियों ने मनुष्य के जीवन के विभिन्न विश्लेषणात्मक तथ्य प्रस्तुत किए हैं मनुष्य ही एक ऐसी योनि है जिसमें देवताओं को भी पार करके सीधे सीधे उस परमतत्त्व को जानने की शक्ति और बुद्धि होती है मनुष्य शरीर से मन से इच्छाओं से ही नहीं होता मनुष्य वह जो मनुष्यत्व की अनुभूति करे परमतत्त्व को जानने की शक्ति और मनुष्यत्व की अनुभूति हमारे भारतवर्ष की निधि हैं
संकटों के आने पर हम सनातनधर्मियों को मार्ग भी सूझ जाते हैं समस्याएं अनेक हैं लेकिन सुलझाव मनुष्य के पास ही है
हमारी संस्कृति विचार व्यवहार अद्भुत हैं हमारे यहां छह तीर्थ कहे गए हैं भक्त तीर्थ गुरु तीर्थ
माता तीर्थ पिता तीर्थ पति तीर्थ और पत्नी तीर्थ
आचार्य जी ने भक्त तीर्थ को स्पष्ट करने के लिए युधिष्ठिर और विदुर का उल्लेख किया युधिष्ठिर अनन्य भक्त विदुर से कह रहे हैं आप जैसे भागवत स्वयं ही तीर्थरूप होते हैं आप लोग अपने हृदय में विराजमान भगवान् के द्वारा तीर्थों को महातीर्थ बना देते हैं
गुरु शिष्य के हृदय में अहर्निश प्रकाश करता है शिष्य के संपूर्ण अज्ञान को दूर करने का प्रयास करता है जो स्वयं नहीं कर पाता वह शिष्य से करवाना चाहता है
आचार्य जी ने माता तीर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक कथा सुनाई जिसमें जब पुत्र को आधा काटने की बात आई तो असली मां चिल्ला दी इसी को दे दो यह मेरा नहीं है और इसी से असलियत जानकर राजा असली मां को पुत्र सौंप देता है
पिता तीर्थ के लिए आचार्य जी ने भैया पवन की एक कविता का उल्लेख किया
पति तीर्थ में पत्नी पूर्णरूपेण पति के प्रति अनुरक्त रहती है
जो पत्नी पति के दाहिने चरण को प्रयाग और वाम चरण को पुष्कर मानकर उसके जल से स्नान करती है उसको सारे तीर्थों का फल मिलता है
इसी तरह कहा गया है भार्या के समान कोई तीर्थ नहीं
आचार्य जी ने शून्य के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए चाणक्य का उल्लेख किया
अविद्यं जीवनं शून्यं दिक् शून्या चेद बान्धवा:। पुत्रहीनं गृहं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता।।
इसके अतिरिक्त वैनाशिक क्या है गरीबी और दरिद्रता में क्या कोई अन्तर है जानने के लिए सुनें