4.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३३ वां* सार -संक्षेप


यह संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा-स्थल है।

दु:ख है,प्रश्न कठोर देखकर होती बुद्धि विकल है।

किंतु स्वात्म बल-विज्ञ सत्पुरुष ठीक पहुंच अटकल से।

हल करते हैं प्रश्न सहज में अविरल मेधा-बल से।।

-रामनरेश त्रिपाठी


वास्तव में यह संसार एक परीक्षा स्थल है इसमें अनेक शाश्वत और परिस्थितिजन्य समस्याओं का हमें सामना करना पड़ता है इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि सारी समस्याओं को हल करने की क्षमता मनुष्य के पास ही है अपनत्व के गहन बोध के साथ आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि समस्याओं को देखकर हम अटक न जाएं भटक न जाएं, समस्याओं से जूझने हेतु मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें, हमें अपने कर्तव्यों का बोध हो सके, अनेक विकल्पों से समृद्ध अपने सनातन धर्म के प्रति हम निष्ठावान् रह सकें और  कठोर प्रश्नों की तैयारी कर सकें 


आचार्य जी ने सनातन धर्म की विशेषाताएं बताईं यह व्यापक और गहन है पशुओं द्वारा इसे समाप्त करने के अनेक प्रयास होते रहे हैं लेकिन यह शाश्वत है 

देवार्चन का अपना महत्त्व है हमारे यहां अनेक देवता हैं जल, सूर्य, वायु, अग्नि, पृथ्वी आदि भी देवता हैं 

हम देवता भाव से इस संसार में रहते हैं 

सनातन धर्म में दो विधियां हैं याग और पूजा 

नई पीढ़ी में भी हम पूजा भाव विकसित करें 

उसे इसके लाभों के बारे में बताएं  उसे बताएं कि हम केवल स्थूल शरीर का पिंड नहीं हैं घर में सब एक साथ भोजन करें 

आचार्य जी ने अधिवेशन, जिसमें पिंड से लेकर ब्रह्मांड तक का चिन्तन होने जा रहा है, का उद्देश्य बताया 

अधिवेशन में सम्मिलित हो रहे अपने भावसम्पन्न आत्मीय जनों की हमें पहचान करनी है अधिवेशन से जाने के बाद भी उनकी स्मृतियों में हमारा प्रेम आत्मीयता हमारा उद्देश्य बना रहे यह प्रयास करना है उन्हें आश्वस्त करना है कि शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा हम सभी के लिए महत्त्वपूर्ण है


जो जहां है वहीं की समीक्षा करे


आत्मबल की स्वयं ही परीक्षा वरे 


संगठन -भाव क्षण भर न ओझल रहे 


देश के प्रेम की शीश शिक्षा धरे

जो भी कार्य करें पूरी प्रामाणिकता से करें 

हम सभी को यशस्विता प्रिय है अपने कर्तव्य -बोध और कर्तव्य- निर्वहन से यह संभव है 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि युग भारती का स्वभाव और स्वरूप क्या है 

इसके अतिरिक्त शक्ति देखकर कौन साथ आते हैं जानने के लिए सुनें