प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११३४ वां* सार -संक्षेप
कभी मन शांत रहता है कभी उद्भ्रान्त रहता है
कभी उत्साह के अतिरेक में दिग्भ्रान्त रहता है
कि चन्दा का मनस् के साथ है कोई गहन नाता
तभी तो वह सतत उत्क्रान्त या आक्रान्त रहता है।
(चन्द्रमा मनसो जातः ---------- )
हम प्रायः सांसारिक समस्याओं से जूझते रहते हैं हमें सांसारिक परिस्थितियों से सामना करना पड़ता है और ऐसे में सबसे पहले हमारा मन प्रभावित होता है जिससे शरीर पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और यह मनुष्य के साथ संयुत है
सुख-भोग जगत की इच्छा है इच्छा की ही उत्पत्ति जगत
फिर क्यों निरिच्छ का भाव सभी ज्ञानी ध्यानी बतलाते हैं
यह प्रश्न जटिल अद्भुत अबूझ तर्कों से सब झुठलाते हैं
चिन्तना जगत में जब रहता कुछ उलझपुलझ रह जाता हूं
फिर बिना ठीक से समझे ही औरों को कुछ बतलाता हूं
यह सुनना गुनना बतलाना बहलाना या दहलाना भी
संसारी जीवन में मनुष्य के साथ सदा संयुत रहता
प्राय: जीवन भर इसी तरह कहता सुनता रहता रहता
यह कहते-सुनते रहते ही जीवन-यात्रा चलती रहती
यह रहती कभी हवाओं पर तो कभी जलधि पर भी बहती
जीवन तरंग जीवन उमंग जीवन अनंग जीवन विराग
अद्भुत अबूझ अनुपम अनन्त मानव का यह जीवनी राग
जब हमारे मन में भी कोई भाव आएं हमें उन्हें लिख डालना चाहिए
लेखन हमारा आत्मिक मित्र है हम अपने भीतर से उत्पन्न भावों को जब लिख लेते हैं और बाद में पढ़ते हैं तो आश्चर्य भी होता है और सुखानुभूति भी होती है
इसका नाम आत्म -दर्शन भी है
आचार्य जी ने दर्शन और विज्ञान में अन्तर बताया
दर्शन विचारों की एक प्रणाली है आभ्यान्तरिक दृष्टि वाले विचारों को दर्शन कहते हैं बाह्य दृष्टि वाले विचारों को विज्ञान कहते हैं
चेतन अचेतन से मिलकर यह सारा जगत बना है हमारे सनातन धर्म में आस्तिक और नास्तिक दो प्रकार के दर्शन हैं छह आस्तिक और छह ही नास्तिक
भारत की इस पुण्य भूमि से निकले जितने भी धर्म मत संप्रदाय इस संसार में हैं उन सभी का आधार ये आस्तिक नास्तिक दर्शन हैं
और उनमें विरोध उत्पन्न होता है फिर विरोधियों को हम समाप्त करने में लग जाते हैं राम -कथा महाभारत उदाहरण हैं
हमारे पास अनुभूतियां और उद्भूतियां दोनों हैं लेकिन अनुभूतियों में कभी कभी इतना उलझ जाते हैं कि उसी में टूट जाते हैं
उलझावों में लेखन कला महत्त्वपूर्ण है लेखन भी एक योग है
जो क्षरित नहीं होता वह अक्षर है
हमारे भारत की शिक्षा बेजोड़ है शिक्षा पर बहुत चिन्तन की आवश्यकता है नौकरी वाली शिक्षा के अतिरिक्त भी शिक्षा है और इसे नई पीढ़ी को बहुत समझाने की आवश्यकता है इन बच्चों को विद्या अविद्या का भेद समझाने की आवश्यकता है तब वे भ्रमित नहीं होंगे
युगभारती के चारों आयाम तात्विक शब्द हैं
आगामी अधिवेशन प्रदर्शन के साथ दर्शन भी बने इसका हमें प्रयास करना है इसके सार को इसके तत्त्व को संग्रहित करने के लिए कुछ लोग अवश्य आगे आएं और उसे प्रसाद रूप में बांटें यह प्रसाद जब व्यवहार में परिवर्तित होगा तो अत्यन्त आनन्ददायक होगा हमें जो संस्कार मिले हैं वो हमें याद रहते हैं विद्यालय की सदाचार वेला हमें याद है
हमें माता पिता गुरुओं से संस्कार मिले मैं से हम हम से अनन्त तक के विस्तार में हम लोग विश्वास करते हैं ऐसा अद्भुत है हमारा भारतीय जीवन दर्शन
दीनदयाल विद्यालय से हमें इन्हीं सब की शिक्षा मिली है
इसके अतिरिक्त भैया पवन का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया गुरु नानक का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें