6.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३५ वां* सार -संक्षेप

 निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥



आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३५ वां* सार -संक्षेप


यह सत्य है भारत विकास के मार्ग की ओर उन्मुख है और विश्व में उसकी प्रतिष्ठा वृद्धिंगत हो रही है किन्तु भारत के अन्दर सामान्य व्यक्ति की स्थिति चिन्ता का विषय है

यह चिन्ता उस समय प्रदर्शित होती है जब समझदार व्यक्ति सोचता है कि ये सामान्य व्यक्ति क्यों नहीं सोच पाते सत्य यही है कि वे सोच नहीं पाते क्योंकि वे शिक्षित अर्थात् संस्कारित नहीं हैं

गुरु नानक कबीर रविदास आदि ने विद्यालयी शिक्षा प्राप्त नहीं की थी किन्तु जो भी उन लोगों ने शिक्षा ग्रहण की उस शिक्षा का लाभ लेने का हम लोग प्रयास कर रहे हैं

यह मनुष्यत्व की अनुभूति है यह किसी के भी संपर्क से हो सकती है

हम लोग ५ सितम्बर शिक्षक दिवस उत्साह से नहीं मनाते  डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बहुत सफल शिक्षक नहीं कहा जा सकता वे उत्कृष्ट कोटि के अध्येता अवश्य थे उन्होंने भी मैकालेयी शिक्षा ग्रहण की ऐसी शिक्षा जो व्यक्ति को आत्मंभरि ही बनाती है 


किस-किस को याद कीजिए, किस-किस को रोइए,

 आराम बड़ी चीज़ हैं, मुँह ढक के सोइए ।



परमार्थ -चिन्तन न करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा अभिशाप है

आचार्य जी ने एक प्रसंग का उल्लेख कर आचार्यत्व को परिभाषित किया


अस्ताचल वाले देशों के कारण और अन्य कारणों से हम अभी भी भ्रमित हैं  जन्मदिवस पर केक काटना  मदर्स डे वैलैंटाइन डे आदि तरह तरह के दिवस मनाना हर क्षेत्र में परिस्थितियां विषम हैं भीषण धाराएं चल रही हैं हमें उन्हें पार करना है 

ऐसे कठिन समय में अपने शिक्षकत्व को अपनी शिक्षा को अपने समाज को अर्थात् अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है


आचार्य जी ने यह भी बताया कि लालच के कारण शिक्षकत्व का नाश होता है 

तुलसीदास जी के गुरु नरहरि दास साफ सुथरे मन्दिर को देखकर बालक तुलसीदास से अत्यन्त प्रभावित हुए उस बालक से उनको बहुत लगाव हो गया 

तभी तुलसीदास कहते हैं


बंदऊं गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।

 अमिअ मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भव रुज परिवारू


गुरु यदि ईमानदारी से शिक्षा दे दे तो आज के कलियुग में इतना ही पर्याप्त है


मधुमक्खी तक अच्छे और बुरे को पहचान लेती है सत्त्व ग्रहण कर लेती है व्यर्थ त्याग देती है ऐसी ही पहचानने की शक्ति जिनमें आ जाती है वे गुरुत्व खोज लेते हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आलोक जी के NDTV साक्षात्कार की चर्चा क्यों की माली काका के गहन ज्ञान की झलक दिखाने वाले किस प्रसंग की चर्चा की जानने के लिए सुनें