7.9.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११३६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११३६ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हमारे अन्दर भारतवर्ष के महत्त्व, जीवन शैली, तात्त्विक दर्शन, भौगोलिक स्थिति और वास्तविक इतिहास का भावमय चित्र उपस्थित हो जाए आचार्य जी हमें उत्साहित करते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उस उत्साह का हम व्यवहार में प्रयोग करें 


भारत के कण कण में अंकित, गौरव गान हमारा है !

हम हिंदू ऋषियों के वंशज, हिंदुस्तान हमारा है !

अंकित है इतिहास हमारा, त्यागपूर्ण बलिदानों से ।

कौन नहीं हैं परिचित जग में, हिंदूवीर संतानों से l 

रिपु से बातें हमने की हैं,बाणों और कृपाणों से।

 मातृभूमि मानी है हमने,बढ़कर अपने प्राणों से ।

 हिंदुस्तान हमारा है बस, यही हमारा नारा है।

 हम हिंदू ऋषियों के वंशज, हिंदुस्तान हमारा है!

 हम हैं वही जिन्होंने रिपु दल को बहु नाच नचाये थे।

 पथ से भटके अखिल विश्व को हम ही राह पर लाये थे ।

 रहे विश्वगुरू हमसे ही सब, शिक्षा पाने आये थे! 

*अब भी शक्ति भुजाओं में*, *वीरों का हमें सहारा है* !!


अब भी शक्ति भुजाओं में... यह पंक्ति हमें प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है

यह अनुभूति हमें विश्वास प्रदान करती है


राम की कथा में भी भारत का स्वरूप दिखाई देता है 

मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत में कहा

राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?

 भक्त मनुष्य में भी ईश्वरत्व देख लेता है तभी उसे गुरु भी मान लेता है 

आचार्य जी ने चिराग जैन की एक वर्णनात्मक कविता लक्ष्मण -मूर्च्छा की  भी चर्चा की 

ये प्रसंग हमें अपनी शक्ति की अनुभूति कराते हैं तभी हम कहते हैं 

अब भी शक्ति भुजाओं में..


आचार्य जी ने राम कथा का एक प्रसंग बताकर क्षत्रियत्व को परिभाषित किया 

राम की कथा से हमें संतुष्टि मिलती है रामत्व हमारे भीतर भी है किन्तु निष्क्रिय है सुप्त है उस सुप्त रामत्व को जाग्रत करना आज के समय में आवश्यक है हमें अपनी कायरता त्यागनी है पौरुष पराक्रम की अनुभूति करनी है हमें भ्रमों और भयों में मार्ग भ्रष्ट नहीं होना है 

मनुष्यत्व और राक्षसत्व वाले इस संसार में ये अवतार समय समय पर होते हैं और मनुष्यत्व के संसार का उद्धार करते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया आत्मीय जनों के अपने समाज को उम्मीद बंधाने वाले आगामी अधिवेशन के विषय में क्या बताया आम के बगीचे का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें