प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११७० वां* सार -संक्षेप
अत्यन्त प्रभावशाली वाणी के धनी आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि पराक्रम कौशल आए और हमारे अन्दर समाज -सेवा की ललक जागे
हम अपना खानपान सही रखें दिनचर्या सही रखें ताकि शरीर निरोगी रहे आत्मस्थ हो सके
वेद जिसमें सारे सांसारिक रहस्यों के सूत्र हैं ब्राह्मण ग्रंथों आरण्यक उपनिषदों जिनमें उन सूत्रों की गहन व्याख्या है आदि का अध्ययन करें
मनुष्य के जीवन का स्वरूप क्षरणशील मरणशील और कर्मशील है l कर्मशीलता मनुष्य का एक रहस्यात्मक सद्गुण है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है कल जाने माने उद्योगपति की मृत्यु पर उनके सद्गुणों के कारण जनज्वार उमड़ पड़ा
गीता के दूसरे अध्याय का एक छंद है
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
वेद तीनों गुणों के कार्य को ही वर्णित करने वाले हैं तो हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ साथ ही निर्द्वन्द्व भी हो जाओ , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ , योगक्षेम की अभिलाषा भी न रखो और परमात्मपरायण हो जाने का प्रयास करो ।
कैर्लिंगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।।14.21।।
अर्जुन जानना चाह रहा है कि इन तीनो गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन लक्षणों से सज्जित होता है ? वह किस प्रकार का आचरण प्रदर्शित करता है ? और वह किस उपाय से इन तीनों गुणों से परे होता है।।
भगवान् समझाते हैं - ज्ञानी पुरुष प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह के प्रवृत्त होने पर भी उनका द्वेष नहीं करता तथा निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा नहीं करता है।
उसे उदासीन रहकर गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता एवं "गुण ही व्यवहार करते हैं" ऐसा जानकर स्थित रहता है और उस स्थिति से तनिक भी विचलित नहीं होता।
जो मान और अपमान में एक समान अवस्था में रहता है,शत्रु और मित्र के पक्ष में भी सम है, ऐसा सर्वारम्भ परित्यागी पुरुष ही गुणों से अतीत हुआ कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हाथी और जिलाधिकारी का क्या प्रसंग बताया दुर्योधन का उल्लेख क्यों हुआ खून बहने पर भी कौन चलता चला गया जानने के लिए सुनें