प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११७१ वां* सार -संक्षेप
मनुष्य के पास कल्पना नामक अद्भुत शक्ति होती है कल्पना का एक अंश ही मिल जाए तो उसका बहुत विस्तार किया जा सकता है काल्पनिक कथाएं मनुष्य को बहुत सहारा प्रदान करती हैं
जीवन एक कथा है इसमें व्यथा और आनन्द दोनों है
मनुष्य इस कथा के लिए अनेक विस्तार कल्पनालोक में करता है अनेक योजनाएं बनाता है फिर उनका क्रियान्वयन करता है
कल्पना से परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया है
परमात्मा सर्वशक्तिमान है उसके नियन्त्रण में काल भी रहता है इससे संबन्धित एक कथा आचार्य जी ने महाभारत की सुनाई जिसमें अर्जुन के स्नान का और द्रौपदी के भोजन बनाने का उल्लेख है
परमात्मा जब द्रवित होता है
जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥
जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।
सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ॥ 72 ख॥
जैसे कोई खेल करने वाला बहुत से वेष धारण करके नृत्य करता है और उसी वेष के अनुकूल भाव प्रदर्शित करता है, पर स्वयं वह उनमें से कोई हो नहीं जाता
उसी प्रकार भगवान राम ने भक्तों के लिए राजा का शरीर धारण किया और साधारण मनुष्यों की तरह अनेक परम पावन चरित्र किए l
परमात्मा कलाकार के रूप में उतरेगा तो कौन समझ पाएगा
विवेकानन्द भी एक अंशावतार थे आचार्य जी ने उनका खीरभवानी मन्दिर का प्रसंग बताया
ऐसे प्रसंगों से कथाओं से जब हम संयुत होंगे तो हमें संसार से संघर्ष करने की शक्ति भी मिलेगी सफलता असफलता में भ्रमित नहीं होंगे
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति अद्भुत है
निराश हताश होने से बचें अपना लक्ष्य ध्यान में रखें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसके विवाह की बात की जानने के लिए सुनें