प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११७२ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों से हम प्रेरणा लें और प्रार्थना करें कि हमारी कर्मनिष्ठा में समर्पण भाव प्रविष्ट हो जाए हम देशानुरागी बनें
हमारे दुर्गुण दूर हो जाएं
हम भी अपने अध्यवसाय से अपनी पहचान बनाएं
महाशक्ति हमें अनेक तात्विक विषय प्रदान करती है उस महाशक्ति से किसी व्यक्ति का कितना जुड़ाव है यह आर्ष परम्परा के अनुसार उसके पूर्व जन्मों पर आधारित हो सकता है
अध्ययन के साथ स्वाध्याय अनिवार्य है अर्थात् स्वयं का अध्ययन अनिवार्य है स्वयं के साथ स्वाध्याय करने वाले व्यक्तियों की अनुभूतियों का अध्ययन भी स्वाध्याय है
परमात्मा की अद्भुत लीलाओं के कारण ही मनुष्य रूप में हमें जन्म मिला है हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिए
यह आत्मस्थता अद्भुत है अवर्णनीय है
अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
वही का आभास जब हमारे भीतर प्रविष्ट हो जाता है तो हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
जो इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है वह उसी आनन्द में रहता है वह उसे व्यक्त नहीं कर सकता
यह अव्यक्त की अनुभूति जब हमारे भीतर आयेगी तो हम आनन्दित रहेंगे भ्रमित और भयभीत नहीं रहेंगे भूलेंगे नहीं भटकेंगे नहीं
किन्तु निश्चिन्त भी नहीं रहेंगे कारण स्पष्ट है कि हमारा एक पक्ष संसार से संयुत है हमें विद्या के साथ अविद्या को भी जानना है
आत्मानुभूति को व्यक्त करती आचार्य जी द्वारा रचित ये पंक्तियां देखिये
मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ
जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।
मैंने करवट ली तो मानो
हिल उठे क्षितिज के ओर छोर
मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व
निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर
मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है
मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है
मैं हँसा और पी गया गरल
मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ l
*मैं* जब संसार में लिप्त रहता है तो शिथिलता निराशा हताशा घेर लेती हैं
संसार में प्रविष्ट रहेंगे तो समस्याओं के समाधान नहीं सूझेंगे
इस कारण आत्मस्थता अनिवार्य है
हमारे आर्ष ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जो हमें दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं
उन आर्ष ग्रंथों को सरल करके गोस्वामी तुलसीदास जी ने हमें राम कथा के रूप में प्रस्तुत कर दिया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कक्षाप्रमुख के रूप में भैया अजीत पांडेय जी की चर्चा क्यों की भैया पवन मिश्र जी भैया आशीष जोग जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें