क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते
प्रायशो नाभिजातः,
सेवाधर्मः परमगहनो
योगिनामप्यगम्यः ॥
- नीतिशतक
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११७५ वां* सार -संक्षेप
यदि भक्ति में शक्ति नहीं है तो ऐसी भक्ति ढोंग है विजयादशमी पर शस्त्र पूजन किया जाता है जिसका प्रारम्भ राजा विक्रमादित्य ने किया था
शस्त्र वीर का शृंगार है जो शस्त्र को शृंगार के रूप में धारण नहीं करते वो कायर हैं
चिन्तन से और सरकार का आश्रय लेकर तो काम नहीं चलने वाला
समय गम्भीर है हमें अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए और अपनी रक्षा के लिए संगठित होने की आवश्यकता है शक्तिसम्पन्न होना अनिवार्य है केवल चिन्तन से काम नहीं चलेगा अपने लक्ष्य का ध्यान रखें सक्रिय सचेत जाग्रत रहें
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।
सब लोग हिलमिल कर चलो, पारस्परिक ईर्ष्या तजो,
भारत न दुर्दिन देखता, मचता महाभारत न जो ॥
हो स्वप्नतुल्य सदैव को सब शौर्य्य सहसा खो गया,
हा ! हा ! इसी समराग्नि में सर्वस्व स्वाहा हो गया ।
दुर्वृत्त दुर्योधन न जो शठता - सहित हठ ठानता,
जो प्रेम-पूर्वक पाण्डवों की मान्यता को मानता,
तो डूबता भारत न यों रण-रक्त- पारावार में,
' ले डूबता है एक पापी नाव को मझधार में । '
(मैथिली शरण गुप्त कृत जयद्रथ -वध )
अभिजात वर्ग समाज के लिए क्यों बोझ हो जाता है निराला जी की श्रद्धा पाने वाला कौन भाग्यशाली व्यक्ति था अभिमन्यु के विवाह के समय क्या चर्चा हुई थी और उसमें रोहिणी के पुत्र बलराम ने क्या कहा था, भैया मनीष जी, भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ शस्त्रों को देखकर कौन प्रसन्न हुआ था जानने के लिए सुनें