17.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७६ वां* सार -संक्षेप


यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित करते हैं हमें इन सदाचार संप्रेषणों का लाभ उठाना चाहिए


हम अपने भीतर झांकें 

आत्मानुभूति में प्रविष्ट होने पर ही हम भय और भ्रमों से मुक्त हो पाएंगे 

यही अध्यात्म है 

यह अध्यात्म शक्ति सामर्थ्य पराक्रम भक्ति कर्म धर्म का भंडार है यह हमारे ग्रंथों में वर्णित है 

दुर्भाग्य से हम भ्रमित हो गए 

हमें अब इस भ्रम से दूर होना है

वास्तविक इतिहास का अवगाहन करेंगे तो हमारी हिम्मत में वृद्धि होगी


जो काम हमें मिला है उसे कर्तव्यपूर्वक पूर्ण करें 

आइये आचार्य जी की निम्नांकित एक शाश्वत कविता से लाभ उठाने का प्रयास करें 


भयद तूफान की आवाज बढ़ती जा रही है ,

बची कुछ रोशनी अंधियार बीच समा रही है ,

क‌ई कमजोर दिल धड़कन समेटे रो रहे हैं ,

विवश मजबूर से वे जिंदगी को ढो रहे हैं ,

मगर हम हैं कि हिम्मत हौसले से आ डटे हैं ,

न किंचित भी डिगे हैं या कि तिल भर भी हटे हैं ,

हमारे पूर्वजों ने यही हमको है सिखाया ,

कि साधन शक्ति का आगार है यह मनुज-काया ,

सदा उत्साहपूर्वक विजय  पथ को नापना है ,

कठिन कितनी डगर है हमें यह भी मापना है ।।

किसी भय से नहीं भयभीत होते हम कभी भी ,

विगत में भी  दबे हैं और न दबना है अभी भी ,

हमारे पूर्वजों ने युद्ध भी हंसकर लड़ा है ,

हमारा शौर्य सीना तान कर हरदम अड़ा है ,

कि हम हैं जो समर में भी उतरकर ज्ञान देते,

पराजित शत्रु के भी आत्म को  सम्मान देते,

कभी हमने किसी को भी  पराया ही न माना,

सदा विश्वात्म को निज अनुभवों में आत्म जाना,


इसी विश्वास को व्यवहार में हम सब उतारें,

परायी ओर क्षण भर भी न लालच से निहारें ll 

(ओम शङ्कर २४. ०९. २०२१ )


इसके अतिरिक्त  ज्ञान और विधान के एक दूसरे के पूरक होने पर क्या होता है भैया मनीष कृष्णा का आचार्य जी ने नाम क्यों लिया कौन से लोक व्यवहार संस्कृति को संपोषित करते हैं

जानने के लिए सुनें