18.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७७ वां* सार -संक्षेप



अनेक प्रपंचों से घिरे होने के बाद भी हमें फलित पुष्पित देखने की चाह में आचार्य जी नित्य सहज भाषा में प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इस शुभ अनुशीलन का हमें लाभ उठाना चाहिए और इसका आनन्द लेना चाहिए 

जिसकी दृष्टि अच्छी है उसके लिए यह देश अद्भुत है उसको यह धरती मां लगती है अन्यथा जिनकी दृष्टि विकृत है जो अतृप्त और आसुरी स्वभाव के हैं  

 उन्हें यह भोगभूमि लगती है उन्हें लगता है इस देश में कुछ है ही नहीं 


हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन है 

सभी  सुन्दर सलोना शान्त सुरभित मञ्जु भावन है

यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से 

उसको लगा करती धरा माता और सुजन सब भाई से

पर सिर्फ धन की प्राप्ति जिनका जन्मजात स्वभाव है 

उनको सदा दिखता यहां सर्वत्र अमिट अभाव है


अपनी समीक्षा भी करें कि क्या अपना स्वभाव परिवर्तित हो सकता है अच्छे संगठन के लिए अच्छा स्वभाव अनिवार्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वृक्ष में लड्डू लगना कैसे सिद्ध किया, कर्ण सिंह का उल्लेख क्यों हुआ हरिऔध ने किन्हें पढ़ाया था जिनका सम्बन्ध हमारे विद्यालय से था  पुष्टिमार्ग की चर्चा में आचार्य जी ने आज क्या कहा तक्षक को बाग में क्यों नहीं ले जाना चाहिए जानने के लिए सुनें