प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६२ वां* सार -संक्षेप
सुख, सुविधाओं के कारण,नासमझी के कारण और प्रपंची लोगों के दुष्प्रभाव से भ्रमित होने के कारण हम लोग आत्मविस्मृत हो गए
अब समय है हमें सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए हमें सनातन धर्म के महत्त्व को समझना चाहिए जिसके चिन्तन में संसार और संसारेतर दोनों का समन्वय है जो हमारा अंधकार दूर करता है
तमसो मा ज्योतिर्गमय
जो परामर्श देता है कि निर्बलता को दूर करने वाली सात्विक जीवन शैली ही कल्याणकारी है भारतीय संस्कृति सुरम्य है क्योंकि यहां गुरुत्व और शिष्यत्व फलीभूत होता है इसके लिए हमें वेद पुराण उपनिषद् आदि का अध्ययन स्वाध्याय करना चाहिए
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपनी संस्कृति भाषा अपने देश पर विश्वास करने का मार्ग खोजें अपने संतत्व के साथ विवेक को जाग्रत रखें शयन से पूर्व हम अपने इष्ट का ध्यान अवश्य करें इष्ट हमारा मार्गदर्शक होता है जिस प्रकार अर्जुन को भगवान् कृष्ण ने मार्गदर्शन दिया
शौर्य पराक्रम धैर्य के प्रतीक नरावतार ज्ञानी विद्वान् अर्जुन पितामह भीष्म गुरु द्रोण आदि को सामने देखकर व्याकुल हो जाते हैं
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।
२. ५
इन महान् गुरुजनों को मारने की अपेक्षा इस लोक में भिक्षा का अन्न ग्रहण करना अधिक कल्याणकारी है क्योंकि गुरुजनों को मारकर मैं इस संसार में रक्तरंजित अर्थ और काम रूप भोगों को ही भोगूँगा।
करुणा की मलिनता से आच्छादित कर्तव्यपथ पर भ्रमित हुए मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो वह बताइये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ मुझ शरणागत को आप उपदेश दीजिये।।
तब भगवान् कृष्ण अर्जुन का मार्गदर्शन करते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुरुषोत्तम जी का नाम क्यों लिया रविवार की योजना क्या है जानने के लिए सुनें