प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म।
रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११७९ वां* सार -संक्षेप
जो भयभीत हैं भ्रमित हैं वे अच्छा काम करने में भी डरते हैं सर्वप्रथम हमें अपना भय भ्रम दूर करना है स्थिति गम्भीर है उथल पुथल चल रही है
ऐसे संकट में हमें क्या करना है हमें संगठित रहना है
इस कलियुग में हजार हाथियों का बल यदि हमारे पास नहीं है तो संगठन का बल तो हो सकता है इस तरह के प्रयास चल रहे हैं
संगठन के विषय में डा हेडगेवार की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कल्पना थी वे चाहते थे कि यथाशीघ्र हम इतने संगठित हो जाएं कि एक एक व्यक्ति शक्ति बुद्धि विचार से युक्त होकर एक सुगठित स्तम्भ बन जाए
समाज की बेचारगी भयानक है
राक्षस अपनी जनसंख्या वृद्धिंगत करने में रत हैं ऐसे में हमें अपना अस्तित्व
बचाए रखना है और इसके लिए संघर्ष करते रहना है
कालनेमियों को मारने के लिए हनुमानत्व की आवश्यकता है
हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥
बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर
हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर
ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए
ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पत्रकार अर्चना तिवारी की चर्चा क्यों की
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
आदि की व्याख्या क्यों करनी चाहिए
आयुर्वेद का इलाज क्यों आवश्यक है औरास की चर्चा क्यों हुई २७ अक्टूबर को होने वाले स्वास्थ्य मेले के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा कौन से कोषाध्यक्ष अस्वस्थ हैं अपनी भारतीय संस्कृति को क्यों समझने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें