समय के साथ गति पकड़ो मगर ठोकर बचाकर
कि मन के साथ बौद्धिक शक्ति को पूरा जगाकर
हमें पुरुषार्थ करने के लिए भेजा गया है
हमारे लिए इस जग में सभी कुछ ही नया है
हमें अभ्यास करना है यहाँ की रीतियों का
कि अपने पूर्व पुरुषार्थी जनों की नीतियों का ।
कुछ क्षणों के लिए ही सही यदि हम सात्विक जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११८० वां* सार -संक्षेप
प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म।
रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।
किसी भी कार्य को करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि उस कार्य को करते समय हम चिन्ता न करें यश मिलेगा कि नहीं इसकी चर्चा हो रही है या नहीं आदि आदि पर ध्यान न दें
उस कार्य को हम त्यागपूर्वक करें
त्यागपूर्वक कार्य न करने से हम आनन्द से दूर हो सकते हैं जब कि चाहते हम आनन्द ही हैं
हम त्यागपूर्वक कार्य करें हम कार्यकर्ता ही हैं गीता के १८ वें अध्याय में तीन प्रकार के कर्ता कहे गए हैं
सात्विक राजसिक और तामसिक
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।
जो कार्यकर्ता रागरहित अर्थात् सारे भौतिक साधनों संसर्गों संपर्कों इच्छाओं कामनाओं से मुक्त , अनहंवादी अर्थात् मिथ्या अहंकार से मुक्त , धैर्य ( जिसके कारण ही वह संकल्पी भी होगा ) और उत्साह से समन्वित तथा सिद्धि और असिद्धि में निर्विकार है, वह सात्त्विक कहा जाता है।
रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।
हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।।18.27।।
रागी, कर्मफल की इच्छा करने वाला , लोभी, हिंसक स्वभाव वाला, अपवित्र और हर्ष व शोक से अन्वित कर्ता राजस है
हमें विकारों से मुक्त होने की चेष्टा करनी चाहिए और इसके लिए आत्ममन्थन आत्मचिन्तन अत्यावश्यक है
अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते।।18.28।।
जो कार्यकर्ता असावधान,अशिक्षित,अकड़ रखने वाला, जिद्द करने वाला,उपकारी व्यक्ति का अपकार करने वाला, आलस से भरपूर , विषादी और दीर्घसूत्री है, वह तामसी है
अद्भुत ग्रंथ है गीता जिसमें हमारे कल्याणार्थ उपदेश है इस ग्रंथ में दर्शन है व्यवहार है और संसार में रहने का सलीका भी है हम शान्ति की कामना करते हैं लेकिन अशांतिकारक कार्यों में लगे रहते हैं
अन्य ग्रंथ भी इसी प्रकार हमारे कल्याण के लिए हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए
हमें नित्य लेखन करना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गोविन्दाचार्य जी की चर्चा क्यों की, दिल्ली में कौन नमूना है आदि जानने के लिए सुनें