22.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८१ वां* सार -संक्षेप

 प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म। 

रात्रि समीक्षा दिनकर की हो, यही आज का धर्म। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८१ वां* सार -संक्षेप



वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः का लक्ष्य लेकर चल रहे हम लोग स्वयं भी जाग्रत रहें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं हमें इन  संप्रेषणों का लाभ उठाना चाहिए

भावनाओं से भरे हम लोगों के मूर्तियों,प्रकृति, पुस्तकों के दर्शन करके भाव बदल जाते हैं एक ऐसी ही पुस्तक है 

१९६२ के चीन से युद्ध से व्याकुल हुए दिनकर जी के काव्य संग्रह के रूप में *परशुराम की प्रतीक्षा*


(परशुराम की मुट्ठी से परशु तब छूटा जब उन्होंने पिता के कहने पर ब्रह्मकुंड में स्नान किया भारतवर्ष को उस परशु से ही उन्होंने फिर मुक्त किया है)

जिसके माध्यम से कवि यह संदेश  देना चाहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा हेतु सतत जागरूक रहना चाहिए। राष्ट्र के हृदय में घुमड़ने वाली बेचैनियों को कवि बारी-बारी से अभिव्यक्ति देता है और कविता के अन्त में वह उस पथ का भी संकेत करता है जिस पर आरूढ़ हुए बिना भारत सम्मान के साथ नहीं जीवित रह सकेगा


...उचक्के जब मंचों से गुजर रहे थे तूने उन्हें प्रणाम किया था...


देश पर गम्भीर खतरा है हमें बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है चैन से न रहें  संगठन के सही अर्थ को समझें भावी पीढ़ी  के लिए कांटे न बोएं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ब्रह्मपुत्र नदी के विषय में क्या बताया राजकुमार कौन हैं जानने के लिए सुनें