जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥
प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म।
रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११८२ वां* सार -संक्षेप
मूँद-मूँद वे पृष्ठ, शील का
गुण जो सिखलाते हैं,
वज्रायुध को पाप, लौह को
दुर्गुण बतलाते हैं।
मन की व्यथा समेट, न तो
अपनेपन से हारेगा।
मर जायेगा स्वयं, सर्प को
अगर नहीं मारेगा।
पर्वत पर से उतर रहा है महा
भयानक व्याल।
मधुसूदन को टेर, नहीं यह
सुगत बुद्ध का काल l
नाचे रणचण्डिका कि उतरे
प्रलय हिमालय पर से,
फटे अतल पाताल कि झर-
झर झरे मृत्यु अम्बर से;
झेल कलेजे पर, किस्मत की
जो भी नाराजी है,
खेल मरण का खेल, मुक्ति
की यह पहली बाजी है
सिर पर उठा वज्र, आँखों
पर ले हरि का अभिशाप ।
अग्नि-स्नान के बिना धुलेगा
नहीं राष्ट्र का पाप ।
ये पंक्तियां दिनकर की पुस्तक
परशुराम की प्रतीक्षा से हैं यह अद्भुत पुस्तक है जो भारत और चीन में २० अक्टूबर से २१ नवम्बर १९६२ तक जो युद्ध हुआ था उससे व्यथित दिनकर की भावनाओं को दर्शाती है
परशुराम की प्रतीक्षा, रामचरित मानस, गीता आदि
का सार संक्षेप एक ही है कि *शक्ति और भक्ति के सामञ्जस्य* को हमें समझना ही होगा अन्यथा हमारा अध्ययन धनार्जन मान सम्मान प्रतिष्ठा सब व्यर्थ है
आचार्य जी हमें सचेत सतर्क कर रहे हैं हमें इस ओर ध्यान देना है हमें अपने को बदलना है अन्यथा किसी को नहीं बदल पाएंगे आत्मशोध आवश्यक है
इस समय संकट के बादल छाए हुए हैं परिस्थितियों का रूप परिवर्तित हुआ है
इन संप्रेषणों को हम ध्यान से सुनें तो हमारा सांसारिक कर्दम नष्ट हो जाएगा
हमें मनुष्यत्व की अनुभूति करनी है
हमें विलायती शिक्षा ने बहुत भ्रमित किया भ्रम के कारण राह से भटकने के कारण कुछ लोग कहने लगे गीता से वैराग्य आता है महाभारत ग्रंथ के होने से युद्ध हो जाता है हमें इस भ्रम को समाप्त करना है इस धुंध को हटाना है शत्रु को मारने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नवनीत जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया बी एन एस डी में किसके पोस्टर्स लगे थे जानने के लिए सुनें