24.10.24

प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म l रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म ll प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८३ वां* सार -संक्षेप

 सदा संयम नियम के साथ धीरजमय पराक्रम हो 

समय पर छोड़ उहापोह, तत्क्षण प्रकट विक्रम हो


कि मानव जन्म ही अपना समर्पण शक्ति संयम है

हमेशा याद रखना है जन्म जीवन एक अनुक्रम है।


प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म l 

रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म ll 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८३ वां* सार -संक्षेप


इस समय गम्भीर समस्याएं हैं जो कहीं उलझती कहीं सुलझती दिखाई दे रही हैं

 राजनीति के साथ अपनी स्वार्थपरायणता में संपूर्ण समाज का स्वरूप केन्द्रित है

ऐसे में हमें अपने शिक्षकत्व की अनुभूति करनी चाहिए जिसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं सभ्यता और सुसंस्कृति की दिशा में चलने के लिए तत्पर समाज में शिक्षक और शिक्षार्थी का भाव एक दूसरे पर आश्रित है और सर्वत्र व्याप्त है 

शिक्षक सुमाली शुक्राचार्य वृहस्पति विश्वामित्र वशिष्ठ आदि जैसा हो सकता है शिक्षार्थी प्रभु राम जैसा या हमारे जैसा हो सकता है

यदि शिक्षक असमर्थ व्याकुल लोभी धूर्त है तो शिक्षार्थी उससे कहीं अधिक सामर्थ्यहीन बेचैन आदि हो जाएगा इस कारण हमें आत्मचिन्तन करते हुए अपने शिक्षकत्व की उचित भूमिका को पहचानना होगा

हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म को अपनाना होगा भक्ति और शक्ति का सामञ्जस्य करना होगा 

भक्ति में दैन्य भाव का प्रकटीकरण नहीं करना है जैसा सूरदास कहते हैं 


मो सम कौन कुटिल खल कामी।

जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥

भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।

हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥(राग सारंग )

अपितु भक्ति में उत्साह की अनुभूति करनी है करानी है

वीर भाव का समावेश कराना है 


जयति वात-संजात,विख्यात विक्रम,बृहद्बाहु,बलबिपुल,बालधिबिसाला।

जातरूपाचलाकारविग्रह,लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला ॥ १ ॥ 


जयति बालार्क वर-वदन,पिंगल-नयन,कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी।

विकट भृकुटी,वज्र दशन नख,वैरि-मदमत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी ॥ २ ॥

हमें दीन दुःखी होकर काम नहीं करना है हमें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति करनी है 

निराशा हताशा से काम नहीं चलेगा

हम कभी नष्ट न होने वाले सनातन धर्म को मानने वाले हैं अक्षय वट के पुजारी हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  की अनुभूति करते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी लेखन की महत्ता बता रहे हैं जो मन में  भाव विचार आएं उन्हें लिख लें परस्पर के विचारों का आदान प्रदान करें कुछ क्षण गम्भीर चिन्तन हेतु रखें 


भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ पार्क क्यों जाएं स्वास्थ्य शिविर के विषय में क्या ध्यान दिया जाए जानने के लिए सुनें