हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत !!
जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे
तेरी जनम जनम भर हम वंदना करेंगे
हम अर्चना करेंगे …१
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११८५ वां* सार -संक्षेप
जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों को ही जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्व प्राप्त करता है l
हम अविद्या को जानकर इस मरणधर्मा संसार में यशस्विता अर्जित करें कुमार्ग पर जाने से बचें वाणी पर नियन्त्रण रखें प्रेम आत्मीयता लगाव को महत्त्व दें
आइये प्रवेश करें आज की वेला में
वेद मरणधर्मा संसार में शक्ति के भावबोध हैं
आचार्य जी जिनमें हम बिना संशय विद्वत्ता के दर्शन करते हैं वेदांग के बारे में बता रहे हैं
वेद नाम है उसका रूप भी है इस कारण उसके अंग भी हैं
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छः वेदांग हैं । छन्द को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है।
निरुक्त यास्क ने लिखा है इसके पहले निघण्टु बना जो किसने लिखा इस पर अनुसंधान चल रहा है
कात्यायन की एक पुस्तक है सर्वानुक्रमणिका
इसमें सात छंदों का उल्लेख हुआ है
अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन के साथ आज के युगधर्म शक्ति उपासना पर भी हम ध्यान दें हम कमजोर न रहें अन्यथा व्यथित व्याकुल रहेंगे भारत विरोधी वर्ग से जूझने के लिए अपनी तैयारी करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया श्रीकांत गोरे जी का नाम क्यों लिया युगपुरुष की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें