लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल । मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११८८ वां* सार -संक्षेप
आइये प्रवेश करें संसार से अपने को असम्पृक्त कर दिनभर की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए चिन्तन, मनन, स्वाध्याय, संयम की इस वेला में जिसमें हमें अपने विचलित मन को केन्द्रित करने की,अपने भीतर प्रवेश करने की, इष्ट में अपने मन को प्रवेश कराने (ताकि अनिष्ट में चिन्तित होने वाली भावना से विरक्ति हो जाए)की प्रेरणा मिलेगी
हमारा सौभाग्य है कि हमें विश्वास वाली भारतीय संस्कृति का सान्निध्य प्राप्त है हमें अनेक ईश्वरीय वरदान मिले हैं जिनके कारण हमें कृतज्ञ होना चाहिए
हमारा शरीर ही कितना अनमोल है इसका हमें भान होना चाहिए इसके लिए आचार्य जी ने एक कथा सुनाई जिसमें भ्रमित भक्त को गुरु समझा पाए कि बहुत सारी संपदा तो परमात्मा ने तेरे साथ संयुत कर दी शरीर का एक एक अंग अनमोल है
हमें अपना लक्ष्य स्मृति में रखना चाहिए हमारे भारत का लक्ष्य है मोक्ष
मुमुक्षु होने की भावना क्षणांश में भी आ जाए तो आनन्द देती है बाहर की इच्छाओं में अपने को दौड़ाते हैं तो spiral बढ़ता चला जाएगा अनन्त तक और उल्टा कर दें तो अपने प्रारम्भिक बिन्दु पर हम पहुंच जाएंगे यही आत्मबोध है
इसके अतिरिक्त भैया न्यायमूर्ति श्री सुरेश गुप्त जी भैया पुनीत जी भैया मुकेश जी भैया उमेश्वर जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें