30.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८९ वां* सार -संक्षेप


जिसका तन मन मस्तिष्क सामञ्जस्यपूर्ण रहता है वह जीवन भर अभ्यासरत रहता है और यदि ये असंयत हो जाते हैं तो व्यक्ति व्याकुल व्यथित हो जाता है और समाधान खोजने का प्रयास करता है समाधान उसे मिलता नहीं तो शरीर का सूक्ष्म तत्त्व व्याकुल होता है और तब उसे अनेक व्याधियां विकृतियां घेर लेती हैं इसी कारण स्वास्थ्य के लिए हमें ध्यानस्थ होने की आवश्यकता होती है

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति अद्भुत है हम अपनी शक्तियों की अनुभूति करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं अपने अन्दर की प्राणिक ऊर्जा की न्यूनता को दूर करने के लिए हमें सांगठनिक आश्रय लेना चाहिए अपने मित्र बनाने चाहिए विद्वेष से बचना चाहिए सहज कर्म करते रहना चाहिए संसार में रहने की रीति भी हमें सीखनी चाहिए 

हमें चिन्तन मनन ध्यान प्राणायाम स्वाध्याय अध्ययन करना चाहिए 

भगवान् राम का नाम हमें ऊर्जा देता है उनका जीवन उनके कार्य उनका व्यवहार और विषम परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य से उनका न डिगना हमें प्रेरणा देता है 

संसारत्व का निर्वाह करते हुए वे संसार से मुक्त होकर चले गए और हनुमान जी को आदेश दे गए और हनुमान जी सतत अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं हम सनातनधर्मियों के रक्षक बने हुए हैं 

यह अनास्थावादियों को काल्पनिक प्रलाप लग सकता है किन्तु हम आस्थावादी यदि क्षण भर भी इसकी अनुभूति कर लें तो हनुमान जी हमें बल बुद्धि विद्या देते ही हैं ऋषित्व के पर्याय तुलसीदास जी कह रहे हैं 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।

इसकी व्याख्या करते हुए 

आचार्य जी  ने वानर शब्द की भी व्याख्या की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन कृष्ण जी भैया पुनीत जी भैया अनिल महाजन जी डा अजय कटियार भैया जी भैया उमेश्वर जी भैया अमित गुप्त जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें