प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी /अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११९० वां* सार -संक्षेप
मनुष्य के मनुष्यत्व के अनेक रंग हैं किन्तु मनुष्य का मनुष्यत्व यही है कि हम संसार में हैं तो संसार हैं यह तो मानें किन्तु यदि उससे मुक्त हैं तो सार हैं तत्त्व हैं यह भी मानें
मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान
मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान
इन भावों में प्रविष्ट होकर संसार के अभावों को पूर्ण करने का प्रयास हम लोग मिलकर करें
संगठित रहकर कार्य करना इस कलियुग में अत्यन्त प्रभावकारी है
प्रातःकाल इन सदाचार वेलाओं से हम लाभ उठाने का प्रयास करें
साथ के पाथेय ज्ञान कर्म भक्ति तप त्याग साधना को न भूलने का प्रयास करें अपने मित्रों को पहचानने की चेष्टा करें संकटों के आने पर हनुमान जी पर विश्वास रखें कि वे कल्याण करेंगे अन्तःकरण में जल रहे दीप की अनुभूति हम आज दीपावली के पर्व पर करें
संकटों में क्या स्थिति होती है आचार्य जी द्वारा ३० नवम्बर २०१५ को लिखी इस कविता के माध्यम से देखिए
जाग मेरे दीप झिलमिल
अंधकार घना कुहासा घोर मन विभ्रमित चिन्तित
शान्त मेधा चकित व्याकुल चित्त विचलित
सांझ घिरती आ रही पर सभी कुछ फैला पड़ा है
प्राण प्यासे झांकते उठ उठ मगर खाली घड़ा है
साथ का पाथेय चुकता जा रहा प्रतिपल तिल तिल
जाग मेरे दीप झिलमिल
हौंसले से ही सभी अरमान बैठे अनमने हैं
रंगरूपों की नुमाइश के फकत तंबू तने हैं
बाहरी दुनिया कि ऐसा लगा भीतर सजी है
दूर सूने में कहीं पर प्यार की वंशी बजी है
सभी रिश्तों में जड़ा है एक सूना काठ का दिल
जाग मेरे दीप झिलमिल
देश दुनिया विश्व घर परिवार बोझिल हो चले हैं
एक थोड़ी सी जगह हिलती हुई पांव तले है
साधना के नाम पर कुछ शब्द सुधियों में पड़े हैं
किन्तु बोझिल वैखरी के द्वार पर ताले जड़े हैं
जा रहे अपने पराए आंसुओं के साथ मिल मिल
...
हम इस जगत के सत्य के संधान को पूर्ण करने का अपना लक्ष्य बनाएं विद्या और अविद्या दोनों को जानें
तत्त्व चिन्तन को प्रकट करती ये पंक्तियां देखिये
दीप तुम ऐसा जलो किञ्चित अंधेरा रह न जाए
सीप का वह बन्द मोती खिले खुलकर जगमगाए
इस जगत् के सत्य का संधान पूरा हो, न भटकूं
मुक्तिपथ पूरा करूं अश्रांत किञ्चित भी न अटकूं
प्राण मन्दिर के जलो रे दीप मेरे सतत झिलमिल
जाग मेरे दीप झिल मिल
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनिल महाजन जी का नाम क्यों लिया रामलाल श्यामलाल का नाम कैसे आया कलियुगी मन्त्र क्या है आत्मभक्ति और राष्ट्रभक्ति क्या अलग अलग है जानने के लिए सुनें