प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६६ वां* सार -संक्षेप
आइये आज के सदाचार संप्रेषण के माध्यम से प्रवेश करें भावजगत में
हमें अपने शिक्षकत्व को जगाना है और नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास हेतु उन्हें संस्कारमय शिक्षा प्रदान करनी है इसमें हमें आनन्द की अनुभूति भी होगी
इस समय भारतीय संस्कृति पर अनेक दुष्ट आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहे हैं
हमें उनके दुष्प्रभाव से अपने को बचाना है और अपनी भावी पीढ़ी को भी बचाना है
इसके लिए अपने मन को मजबूत करना आवश्यक है
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥
हमें संबल प्रदान करने वाली एक अत्यन्त प्रेरक कविता है
जीवन-पथ मोहक जरूर है, इसमें मगर घुमाव बहुत हैं ,
अगल बगल अनगिन आकर्षण लेकिन कुछ में चाव बहुत है।
निर्धारित था लक्ष्य राह के आकर्षण ने भ्रमित कर दिया ,
तैयारी से ही निकला था कुटिल राह ने श्रमित कर दिया ।
चलता हूं दो-चार कदम कुछ ठिठक देखने लग जाता हूं ,
पीछे का कुछ सोच पलट कर फिर पीछे को भग जाता हूं ।
आगा-पीछा करते करते उभर उठे तल घाव बहुत हैं ।।१।।
जीवन -पथ.......
राह राह ही हरदम रहती चाहे जितने आकर्षण हों ,
सत्कृत बिना न पाप कटेंगे चाहे जितने अघमर्षण हों ।
इसीलिए भ्रम का भी भय अति दुस्तर और भयानक होता,
और जगत का इसी तरह का कुछ कुछ वही कथानक होता ।
इसी कथानक के प्रति अपने मन में उलझे भाव बहुत हैं ।।२।।
जीवन-पथ........
राहों का आकर्षण तज कर चलने का है नाम तपस्या ,
लेकिन ऐसा कर पाना राही के लिए अबूझ समस्या ।
इसी समस्या को सुलझाने में जीवन की सांझ हो गई ,
प्रखर विवेकशील मेधा भी कुंठित बेसुध बांझ हो गई।
लेकिन लक्ष्य-प्रप्ति के प्रति मानस में बसा लगाव बहुत है ।।३।।
जीवन-पथ.......
चलता हूं तो जगह-जगह पर मिल जाते चत्वर चौराहे ,
किधर चलूं दुविधा की मारी व्याकुल होतीं चतुर निगाहें ।
पथदर्शक उठ गए घरों को पथ पर बचे भटकते राही,
सब अभियुक्त सदृश व्याकुल हैं, दिखता कोई नहीं गवाही ।
भरा-पुरा बाजार मगर हर मन में भरा अभाव बहुत है ।।४।।
जीवन-पथ.......
पथ पर सदा भटकते रहने की ही क्या है नियति हमारी ?
क्या अपने जीवन में चिपकी जग की अन्तहीन बीमारी ?
नहीं नहीं यह भ्रम है अपना हम तो शिव संकल्प सनातन ,
चिर पुराण हम ही भविष्य हैं हम ही हैं संतत अधुनातन ।
देखो देखो वह पथ आया जहां अर्चिमय लाव बहुत हैं ।।५।।
जीवन-पथ--------
इसके अतिरिक्त कर्मठ योद्धा श्री हरमेश जी की चर्चा क्यों हुई रात्रि ढाई बजे किसने आचार्य जी को फोन किया भैया शुभेन्द्र जी भैया शुभेन्दु जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें