सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म।
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६५ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि शक्ति की अनुभूति के लिए हम व्याकुल पीड़ित दुविधाग्रस्त व्यथित न रहें, संगठित रहें और सद्भावी व्यक्तियों का संगठन करें
अपने लक्ष्य को याद रखें
कि ऋषि परम्परा के कारण ही जीवित हम सनातनधर्मी पुरोहित राष्ट्र को जीवन्त एवं जाग्रत बनाए रखेंगे
शिष्य बनते हुए भक्ति शक्ति भाव विश्वास प्राप्त करने के लिए हमें प्रतिदिन के इन सदाचार संप्रेषणों की ओर उन्मुख होना चाहिए इनके तत्त्व को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए
माया से मुक्ति के लिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन भक्ति भाव विचार संगति आवश्यक है परमात्माश्रित रहना अनिवार्य है
गीता में अर्जुन भ्रमित हो गए हैं और शिष्य के रूप में भगवान् श्रीकृष्ण से परामर्श लेने के लिए कहते हैं
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।
कृपणता के दोष से तिरस्कृत स्वभाव वाला और धर्म के संदर्भ में व्यामोहित अन्तःकरण वाला मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए जो कल्याणकारी हो वह बताइये
(कृपणता मात्र धन के संदर्भ में ही नहीं होती
अपने गुणों को व्यक्त न करना भी कार्पण्य है अपने अन्दर की शक्ति को भावों को छुपाना भी कार्पण्य है)
अर्जुन को तब भगवान् ज्ञान देते हैं गीता का ज्ञान प्रारम्भ हो जाता है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने शिक्षक श्री माताप्रसाद जी का उल्लेख क्यों किया मुन्नी क्या है किसकी युति ने वर्तमान उठापटक पैदा की आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें