प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११६७ वां* सार -संक्षेप
हम आशावान् हैं हमें नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए मन से नकारात्मकता को दूर भगाएं विश्वासी बनें विश्वास का परिक्षेत्र स्वयमेव विकसित करें
अपने समीक्षा के नेत्रों को विशुद्ध करें
हमारे साहित्य में वियोग के स्थान पर योग पर अधिक बल दिया गया है
जो व्यक्ति ईश्वर में आधारित होकर अपने जीवन के संपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करता है वह सांसारिक समस्याओं से कमल-पत्र की भांति लिप्त नहीं होता है
कमल -पत्र जल में रहते हुए भी शुष्क रहता है
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10।।
गीता का पांचवा अध्याय कर्मयोग पर आधारित है
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग और साधु पुरुषों के बारे में बताया है
हम इसका अध्ययन करें अपने विचारों को पोषित करने के लिए गीता के अतिरिक्त मानस पुराण उपनिषद् आदि का भी अध्ययन करें
हम क्या कर रहे हैं इस पर चिन्तन करें
जो भौतिकवादी व्यक्ति हैं जो शरीर में ही जीवित रहते हैं सनातनधर्म पर विश्वास नहीं करते ऐसे लोगों के प्रभाव में हम न आएं ऐसा न हो कि उनके प्रभाव के कारण हम अपने ही धर्म पर विश्वास न करें
हम तो ये करें कि वे हमसे प्रभावित हों
आत्मविश्वासी बनें आत्मविश्वास में बहुत बल होता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी भैया डा अमित जी भैया डा सारस्वत जी भैया विनय अजमानी जी का नाम क्यों लिया किस परिणाम की आज प्रतीक्षा है स्वास्थ्य शिविर के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें