9.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६८ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत व्यक्तित्वों में से एक आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इन सदाचार वेलाओं की हमें उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है क्योंकि इनमें विचारों सैद्धान्तिक बातों व्यावहारिक बातों सकारात्मक चिन्तन आदि का समावेश रहता है


श्री आदि शंकराचार्य की विवेकचूड़ामणि के छंद 



जन्तुनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंसत्वं ततो विप्रता

तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमसमात्परम्।

आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभावो ब्रह्मात्मना संस्थितिः

मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैरविना लभ्यते ॥ 2॥


सभी प्राणियों हेतु मनुष्य रूप में जन्म -प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है,  उससे भी अधिक कठिन नर-देह, उससे भी अधिक दुर्लभ  ब्राह्मणत्व, उससे भी अधिक दुर्लभ  वैदिक धर्म_पथ में आसक्त होना,उससे भी अधिक है शास्त्रों का पाण्डित्य; आत्मा और परमात्मा का विवेक, साक्षात्कार और ब्रह्म के साथ तादात्म्य में स्थिति   ऐसी मुक्ति सौ करोड़ जन्मों के पुण्यों के बिना नहीं मिलती।

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया बुद्धि के पांच भेद हैं जिनमें अन्तिम है विवेक 

समाधि के निकट जो अवस्था होती है वह है विवेक बुद्धि 


पहले-पहल जब  जगत् सुषुप्तावस्था से उठा था, तब सबसे पहले इसी महत्तत्त्व का आविर्भाव हुआ था।

यह प्रकृति के विकास का पहला चरण है l 

महत्तत्त्व को आचार्य जी ने विस्तार से बताया 

अहं मन इन्द्रियां बुद्धि के लिए कार्य करती हैं 

बुद्धि सीधे आत्मा के लिए कार्य करती है 

बुद्धि के मुख्य कार्य हैं निश्चय और निर्धारण 


इस निश्चय और निर्धारण का उदय सत्त्व गुण की प्रधानता के कारण होता है 

इसके मौलिक गुण हैं धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य 

ये विकृत होने पर हो जाते हैं 


अधर्म अज्ञान आसक्ति और दैन्य


इसी कारण धार्मिक साधनाओं में बुद्धि की पवित्रता पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है 

भगवान् शंकराचार्य की बुद्धि सतोगुण से आप्लावित थी तभी उन्हें धर्म ज्ञान वैराग्य और ऐश्वर्य सुस्पष्ट थे 

उन्हें इसी कारण सहज ज्ञान उत्पन्न हुआ 


 आचार्य जी ने बताया ऋषित्व कठिन नहीं है ऋषि में एकाग्रता होती है उसमें अनुसंधान की गहरी प्रकृति का समावेश रहता है 


इसके अतिरिक्त मन्त्री और सस्ते ऊंट का क्या प्रसंग है भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ, संगठन क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें