प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२०० वां* सार -संक्षेप
यह सुखद अनुभूति का विषय है कि हमारा संगठन विस्तार ले रहा है जिसका लक्ष्य है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाज से ही संपोषित एक ऐसे व्यक्तित्व का उत्कर्ष जो समाजोन्मुखी हो
हम ऋषियों की दी गई दिशा दृष्टि का परिपालन करते हुए सदैव समस्याओं के समाधान के लिए संकल्पित हो एक सीधे सपाट मार्ग पर चल रहे हैं वह मार्ग है परमपिता परमेश्वर का स्मरण अपने महान् पूर्वजों का स्मरण शक्ति बुद्धि विचार सौमनस्य का प्रकटीकरण राष्ट्र -भक्त समाज जिसका हमारे ऊपर एक बहुत बड़ा ऋण है के साथ समरसता स्थापित करना संपूर्ण वसुधा को कुटुम्ब मानना अहिंसा के एक ऐसे सनातन मार्ग पर चलना जिसमें विध्वंसक हमारे शौर्य पराक्रम से भयभीत रहे जिस भी राष्ट्र -भक्त में पात्रता हो उसे अपने प्रयास से उत्थित करना उसे संस्कारित करना भारत राष्ट्र का संरक्षण संवर्धन और इसकी अद्वितीय परम्पराओं का परिपोषण
अपना दीनदयाल विद्यालय भी उसी परम्परा का एक अंश है
दैवासुर संग्राम हमेशा चलता रहा है यह सौन्दर्य और विकृति दोनों की ही द्योतक सृष्टि का एक नियम है
गुरु तेग बहादुर का बलिदान हम जानते हैं
भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला का बलिदान
(बलिदान पर्व - 9 नवंबर और 10 नवम्बर सन 1675 ई.
चांदनी चौक, दिल्ली) भी हमें झकझोर देता है
आचार्य जी ने एक जीवन -मन्त्र बताया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय दीक्षित जी भैया अमित गुप्त जी भैया मोहन जी भैया मनीष जी की चर्चा क्यों की लोप कौन है रज्जू भैया का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें