9.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 9 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९९ वां* सार -संक्षेप


संगठन को महत्त्व देने वाले भगवान् राम का महत्त्वपूर्ण भाग है उनकी वनवास यात्रा राक्षसत्व के भाव वाले रावण पर विजय और रामराज्य का प्रसार 

इसी प्रकार  संगठन को महत्त्व देने वाले भगवान् कृष्ण के राक्षसत्व के विरोध में कार्य हैं 

राक्षसत्व भाव अत्यन्त विध्वंसकारी 

भयानक होता है रूप अलग होते हैं लेकिन उनके कार्य बहुत विनाशकारी होते हैं दैवासुर संग्राम से लेकर आजतक किसी न किसी रूप में यही चल रहा है  एक उदाहरण हाल का ही है 


प्रत्यक्ष देव सूर्य को समर्पित छठ पर्व पर  जिहादियों का हंगामा -

घटना  पूर्णिया के बायसी थाना क्षेत्र के हरिणतोड़ पंचायत के माली गांव की है


भगवान् राम एक शक्ति हैं उनके साथ एक तत्त्व संयुत है लक्ष्मण की सेवा इसी प्रकार शत्रुघ्न की साधना और भरत की भक्ति 

सेवा साधना भक्ति मिलकर भगवान् राम की शक्ति बनती है 

भारतवर्ष रामत्व कृष्णत्व का आगार है और इस आगार में सेवा साधना भक्ति के साथ शक्ति का संयोजन होना ही आवश्यक है 

भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों भारतवर्ष में जन्मे यहां लीलाएं कीं दुष्टों ने दोनों की जन्मभूमि हथिया ली इसी तरह शिव जी के स्थल के साथ भी ऐसा ही किया 

और जनमानस का विस्मयकारी भ्रामक भाव हो गया कि झंझटों से बचना चाहिए


जैसा आचार्य जी ने बताया सेवा साधना भक्ति के साथ शक्ति संयुत है इसी तरह है ज्ञान ,कर्म और भक्ति 

ज्ञान में भी सेवा साधना भक्ति और शक्ति है ज्ञानाधारित कर्म में सभी चीजें सम्मिलित हैं 

भक्ति एक विशिष्ट भाव है उसमें हिसाब किताब नहीं लगाया जाता क्यों कि हिसाब किताब लगाने वाला संकल्पी नहीं हो सकता वह विकल्पी हो सकता है 

गीता धर्म अध्यात्म पर आधारित समुच्चयवादी धर्म है 


*अध्यात्म एक शक्ति है* उससे स्रष्टा परमात्मा की प्राप्ति होती है 

अध्यात्म से हम यदि ऐसी शान्ति को परिभाषित करें जो व्यक्ति को कायर बनाए तो वह शान्ति नहीं मृत्यु है 

मृत्यु के सिलसिले को जो नहीं जानते वे मृत्यु से डरते हैं 

भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों ने यही सिद्ध किया कि  भक्ति संयम साधना के साथ शक्ति किसी भी विध्वंसक शक्ति को पराजित करने के लिए आवश्यक है

कर्म के चैतन्य का अभ्यास आवश्यक है जितने अधिक हमारे सामने कार्य होंगे उतने ही हम सक्रिय रहेंगे शरीर की कमजोरी का अनुभव नहीं होगा अन्यथा शिथिलता समस्याओं को जन्म देती है 


इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपनी  बात कहीं जब  हमें सुनाई दे तो उसकी समीक्षा अवश्य करें और उसमें आवश्यक सुधार आदि लिख लें तो इससे लाभ मिलेगा

स्थान स्थान पर शक्तिपुञ्ज आवश्यक हैं अन्यथा दुष्ट विनाश करते ही रहेंगे

दोषों का निरसन आवश्यक है 

 अवधेशानन्द ने क्या कहा जानने के लिए सुनें