प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२०२ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों में तात्विक अंश रहते हैं जिन्हें हमें ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए
आचार्य जी प्रयास करते हैं कि हमारा मन भाव जगत और भौतिक जगत दोनों में लगा रहे और कर्मानुरागी रहे वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ही हमारा कर्म है राष्ट्र हमारे विचारों संकल्पों सिद्धान्तों का एक विशिष्ट विग्रह है जिसके हम उपासक हैं विद्यालय से ही हमें संस्कार मिल रहे हैं अध्ययन स्वाध्याय महत्त्वपूर्ण है हम अपने अग्नि तत्त्व का अनुभव करते रहें
जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥
श्री रामचरित मानस अद्भुत कथा है सब सज्जन सुख का अनुभव करते हुए उसे सुनें
मानस में चार वक्ता और चार श्रोता हैं
पहले वक्ता भगवान शिव और श्रोता माता पार्वती हैं
दूसरे वक्ता कागभुशुंडी और श्रोता पक्षीराज गरूड़ हैं
तीसरे वक्ता याज्ञवल्क्य (जागबलिक) और श्रोता भारद्वाज मुनि हैं
चौथे वक्ता तुलसीदास और श्रोता उनका मन है
यह चक्र चल रहा है
आचार्य जी ने हनुमान जी का खो गई मुद्रिका वाला प्रसंग बताया जिसका सार था कि हर कल्प में राम जन्म ले रहे हैं आदि
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥
कथा सुनने के लिए विचार विमल होने चाहिए कथा मनोरञ्जन के लिए नहीं होनी चाहिए आत्मस्थ होकर उसे सुनें समय निकालें
अपने दंभ का निरसन करते रहें आनन्द की प्राप्ति होगी
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया संबन्धों के आधार पर बना यह भौतिक जगत मोह मण्डल से मण्डित रहता है
हमारा प्राणवान् शरीर सूक्ष्म और स्थूल से बना हुआ है
तत्व जितना सूक्ष्म होता है उतना ही बलशाली होता है और जो जितना स्थूल है उतना ही बोझिल है
भैया मोहन जी भैया संतोष जी की चर्चा क्यों हुई आचार्य जी ने माता जी के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें