प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२०४ वां* सार -संक्षेप
कवि जब अपने कवित्व के भाव में रहता है तो वह एक अद्भुत सृष्टि रच देता है ऐसी ही भावों से भरी आचार्य जी की
सन् २०१० में लिखी एक कविता है "भारत महान् भारत महान् "जो हम सबके लिए उपादेय है
इस कविता के माध्यम से कवि बता रहा है कि अद्भुत दृष्टि वाले ऋषियों वाला भारत कैसा था वर्तमान में कैसा है और आगे कैसा होगा
भारत महान् भारत महान्
जग गाता था गा रहा नहीं गाएगा फिर पूरा जहान...
शम्बर के विरुद्ध इन्द्र की सहायता के लिए दशरथ युद्ध लड़ते हैं उधर जनक हैं लेकिन रावण के अत्याचार देखकर भी ये लोग एकजुट नहीं हैं शौर्य बिखरा पड़ा है ऐसे में राम जगते हैं संगठन करते हैं रावण को पराजित करते हैं
अपने पुरखों का सपना था कि यह धरती स्वर्ग समान सजे धरती पर शान्ति रहे हमने जन जन को आर्य बनाने का संकल्प लिया पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब माना पुरुषार्थ पराक्रम के अनोखे कीर्तिमान रचे गए भारत तो तप त्याग सेवा समर्पण साधना का पर्याय रहा है
काल व्याल बार बार करवट लेता रहा है
जब द्वापर युग आया तो कुटी ने सुख सुविधा को अपना लिया तामसी रजोगुण ने घेर लिया ईर्ष्या की अग्नि प्रज्वलित हो गई जिसने महाभारत करा दिया
बाद में शिक्षा में आये विकारों ने दुर्दशा की
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज श्रीवास्तव जी, भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें