15.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 15 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०५ वां* सार -संक्षेप


संपूर्ण सृष्टि का केन्द्र बिन्दु भारत है जहां चिन्तन,मनन,अध्ययन, स्वाध्याय,निदिध्यासन,तप, त्याग,सेवा,समर्पण, संयम, पुरुषार्थ, शौर्य और पराक्रम आचरण के अंग हैं

हम भारतवर्ष के विश्वासी सनातनधर्मियों ने अनेक झंझाओं का सामना किया है किन्तु कभी निराश हताश नहीं हुए हैं और उत्साह को कभी कम नहीं होने दिया है


जिन्हें संसार अधिक प्रभावित करता है वे कष्टों में रहते हैं इसी कारण अध्यात्म का महत्त्व है जो हमें आनन्द की अनुभूति कराता है


ये सदाचार संप्रेषण संसारी दृष्टि से संस्कारों का प्रसार हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें

इस समय अद्भुत मेधा की धनी नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी आवश्यक है हम इस ओर भी ध्यान दें


हमको फिर अपनी कमर बांध इन अपनों से लड़ना होगा 

फिर से भारत के लिए भारती भावों पर अड़ना होगा 

भारत माता के पुत्र जलाते दिया सदा तूफानों में 

अरमान लिए हर क्षण जीते मरते भी हैं अरमानों में 

सुख दुःख हो या जीना मरना रहते हरदम सबमें समान 

भारत महान् भारत महान्


इन पंक्तियों में अपनों से लड़ना होगा.. में अपनों का अर्थ है जो स्वतन्त्रता के बाद सत्ता के लोभी हो गए 



हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है यह एक अद्भुत निधि है 

हमें इसका लाभ उठाना ही चाहिए बेचारगी से दूर रहना चाहिए जो भी संस्कार हमें प्राप्त हुए हैं उन्हें पहचानना चाहिए 

भक्ति में शक्ति है इसकी अनुभूति करनी चाहिए भक्ति का अर्थ है अडिग विश्वास


अनन्त कलाओं वाला परमात्मा कुछ कलाओं के साथ बार बार धरती पर आता है ऐसे विशिष्ट बार बार यहां अवतरित हुए हैं 

हमें यह अनुभव करना चाहिए कि हम यदि विशिष्ट नहीं हैं तो अशिष्ट भी नहीं हैं हम शिष्ट हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आदि शंकराचार्य का क्या महत्त्व बताया हम किस भाव के आधार पर अपने को परम शक्तिशाली मान सकते हैं जानने के लिए सुनें........