17.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 17 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०७ वां* सार -संक्षेप


जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।

करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।।

इस सोरठे में  तुलसीदास जी, जिनके साहित्यिक चिन्तन में शौर्य प्रमंडित अध्यात्म प्रमुख है,गणेश जी की वन्दना कर रहे हैं


जिनका स्मरण करने से सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं, जो गणों के स्वामी, सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के सदन  मुझ पर कृपा करें


फिर नारायण की वन्दना भगवान् शिव की वन्दना करने के पश्चात् गुरु की वन्दना करते हैं 


बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।

फिर अन्य की करते हुए कहते हैं


प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥


मैं पवनकुमार श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने हेतु अग्नि हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में *धनुर्धर* प्रभु राम निवास करते हैं



प्रभु राम कैसे जो धनुष धारण किए हुए हैं 

यह है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म जिसकी आवश्यकता इस कारण भी है संपूर्ण वातावरण शान्त और स्निग्ध रह सके


इसके लिए मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए उसको पुरुषार्थ पराक्रम का अनुभव होना चाहिए

यही तात्विक रूप से दर्शन है इस दर्शन को स्वयं की अनुभूति होना भी कहा जा सकता है 


समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥

अद्भुत है नाम रूपात्मक जगत

सतयुग में ध्यान त्रेता में यज्ञ द्वापर में पूजा 

किन्तु कलियुग में राम का नाम ही पर्याप्त है 

नाम लेने पर उनकी कथा सामने आ जाएगी


तुलसीदास बहुत व्यावहारिक हैं इसी तरह सूरदास भी व्यावहारिक हैं इस कारण आचार्य जी उनके साहित्य के अध्ययन के लिए हमें प्रेरित करते हैं

आदि शंकराचार्य का यहां उल्लेख करना भी प्रासंगिक है 

वे स्थान स्थान पर उनसे चर्चा करने जाते थे जो कर्मकांड में रत थे 

सामान्य व्यक्ति के लिए यह कठिन कार्य था कि वह कर्मकांड पर बहुत जोर दे 

उस सामान्य व्यक्ति में कुछ गुण आवश्यक थे जिससे राष्ट्र की रक्षा हो सके

ज्ञान उष्ण होता है हमारे पास ज्ञान है लेकिन हम संसार से  मतलब न रखें तो संसार अनाथ हो जाएगा 

जो उसका ध्यान रखेगा संसार उसी का हो जाएगा 

इसके अतिरिक्त मंडनमिश्र का उल्लेख क्यों हुआ आदि शंकराचार्य की तरह तुलसीदास ने कौन सा कार्य किया जानने के लिए सुनें