18.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२०८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 18 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२०८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा देशभक्ति का भाव और अपनी संस्कृति की रक्षा का भाव अखंड चलता रहे

गंगा के प्रवाह की तरह हमारा राष्ट्र -भक्ति का प्रवाह किसी न किसी रूप में चलता रहे इसी की प्रेरणा देती ये पंक्तियां देखिए 


देशभक्ति वह भक्ति है 

जिसमें सारी शक्ति


सेवा संयम साधना 

यज्ञ दान तप वृत्ति

हानिकारक मानसिक संघर्षण, जो अध्यात्म के साथ शौर्य और संगठन को संयुत करने में बाधा बनता है,से बचते हुए 

जो भी कार्य हम करें यह मान कर चलें कि वह मां भारती की सेवा है

 जन जन में लोकप्रिय गोस्वामी तुलसीदास में भी देशभक्ति का अप्रतिम भाव था उन्होंने बहुत कुछ लिखा 


१ रामचरितमानस

२ रामललानहछू

३ वैराग्य-संदीपनी

४ बरवै रामायण

५ पार्वती-मंगल

६ जानकी-मंगल

७ रामाज्ञाप्रश्न

८ दोहावली

९ कवितावली

१० गीतावली

११ श्रीकृष्ण-गीतावली

१२ विनयपत्रिका

१३ सतसई

१४ छंदावली रामायण

१५ कुंडलिया रामायण

१६ राम शलाका

१७ संकट मोचन

१८ करखा रामायण

१९ रोला रामायण

२० झूलना

२१ छप्पय रामायण

२२ कवित्त रामायण 

२३ कलिधर्माधर्म निरुपण

२४ हनुमान बाहुक 


उनके शिष्य प्रशिष्य भी अत्यन्त कर्मशील थे मानस पाठ की परम्परा को भी उन्होंने चलाया 


सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥

संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥


अयोध्या में मानस की रचना कर तुलसी विद्वानों की धरा काशी आए मानस की रचना ऐसे समय की जब बड़े से बड़े पंडित  प्रजा को दुःखी करने वाले अकबर की चापलूसी करते थे 

एक घटना है 

एक बार जब पट खोले गए तो ग्रंथ पर लिखा था सत्यं शिवं सुन्दरम् 

काशी  शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है वहां के पंडितों ने इस कारण आपत्ति की कि तुलसीदास यहां कैसे आ गए वे तो रामानन्दी है शैव वैष्णव संघर्ष बहुत पुराना है

किन्तु धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि वृद्धिंगत होने लगी 

सर्वत्र सम्माननीय अद्वैत संप्रदाय के आचार्य मधुसूदन सरस्वती से मानस की समीक्षा करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा 


आनन्दकानने ह्यस्मिजंगमस्तुलसीतरुः। कवितामंजरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥


उनके द्वारा जब ऐसी समीक्षा हो गई तो काशी के पंडित तुलसीदास का सम्मान करने लगे तुलसीदास ने काशी में रामलीला का शुभारम्भ भी कर दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया शीलेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें